प्रश्न१,अर्थ संकट में पारिवारिक कलह(झगडा)कैसे मिटावै|
उतर-घर में जितने लोग हों,जो जिस देवता का उपासक हो,वह उसी की आराधना ध्यान(जप,पाठ)दो घडी प्रात:करै,ईश्वर सर्व शक्तिमान हैं|वह सब कुछ देने की शक्ति रखते हैं|
प्रार्थना २,महाराज बहुत धन आ रहा है |लेकिन शान्ति नहीं है|
उत्तर-विश्व में कहीं शान्ति नहीं है,घोर अशांति है|
प्रश्न ३-क्या भगवान नाराज हैं?तकलीफ बहुत है|
उत्तर-भगवान नाराज नहीं होते|कर्मानुसार सुख दुःख जिव पाते हैं|जो कहे भगवान नाराज हैं,वह अपनी मौत और भगवान को खुद भुला है|
प्रश्न ४.दिल साफ,भाव-विश्वास पक्का कैसे हो?
उत्तर-यह जब से भगवान ने दुनिया बनाई है,तब से जिव भगवान से विलग हो रहा है,मन को काबू नहीं किया|हर एक योनी में मन जिव के साथ रहता है|जब उससे जबरदस्ती लड़ो,तब मन हार जाय|
भगवान का जप-पाठ करो|जब पाप नाश हो जावेगा,तब मन लगने लगेगा और दर्शन होने लगेगा|नाम की धुनी खुल जावेगी|ली दशा,शून्य समाधि होने लगेगी|यह सब काम धीरे धीरे बढ़ते हैं|खराब काम जल्द होते हैं|बड़े-बड़े डाकू देखा जो तमाम खून किये,मारे गए,जेल गए,स्वभाव न छुटा|समय आ गया सब छुट गया|मस्त हो गए|
प्रश्न-५.पट खुलने की क्या परिभासा है?
उत्तर-सबसे निचा अपने को मान लो,बस दीनता आ जाएगी,शान्ति मिल जावेगी,मन तुम्हारा संगी हो जावेगा|अभी वह चोरो का संगी है|जब परमारथ,इस्वर का भजन करने लगोगे साथ साथ परस्वारथ करोगे,तब मन तुम्हारे बस हो जावेगा,तुमको तर देगा,खुद त्र जावेगा|सारा खेल मन का है|
प्रश्न ६.सावधान रहने पर भी बार बार गलती होती है|मन में भगवान के लिए तडप,प्रेम नहीं,क्या करै?
उत्तर-अपनी सच्ची कमाई का अन्न खाओ,सब के सुख,दुःख में शरीक (शामिल)रहै|बेईमान का अन्न खाने से २१ दिन असर रहता है|सब से निचा अपने को मान ले|बेकसूर कोई गली दे,धक्का दे,रंज न हो|मान अभिमान से दूर रहे,अपमान लगेगा तो सारा सुकृत (सत्कर्म की कमाई,तप,धन)चोर चाट लेंगे,यह सब बातें सीखी जाती है|सादा भोजन करै,सादे कपडे पहिने|यह सब बातें अपने अन्दर रक्खे,तो पट खुल जाय-असली भजन की कुंजी है|
प्रश्न ७-भगवान के प्यारा कैसे बनू?
उत्तर-घुर बन जाओ-बिना खता कसूर कोई चार बात कहे,सहन कर लो,हाथ जोड़ दो|भक्त को भगवा कोढ़ी,अँधा,लूला लंगड़ा,दरिद्री जैसे चाहे रक्खे,भक्त प्रसन्न रहता है|स्मरण ध्यान न छूटे|
प्रश्न ८-विश्वास प्रेम कैसे हो?
उत्तर-भजन गुप्त रूप से करो|तुम जानो तुम्हारा इष्ट जाने|
प्रश्न ९-पूर्व जन्म के पाप और प्रतिबंध कैसे कटे?
उत्तर-पाप क्या करेंगे?भजन में जुट जाओ|
प्रश्न १०-ऐसी कुछ कतिप कीजिए ताकि कुछ विधि तो बने|अपना करने से कुछ जमा नहीं हो रहा है ऐसा अनुभव है|उलझन बढ़ जाती है|
उत्तर-पीछे पड़े रहो(भजन साधन करते रहो)इससे उलझन पीछे पड़ जावेगी ,तुम आगे बढ़ जावोगे|
प्रार्थना ११.विवेक बुद्धि हो,आत्मा शरीर से अलग रहे और जो प्रसन्नता मनुष्य को नए कपडे बदलने में होती है हमें शरीर छोड़ने में हो|
उत्तर-जब सबसे अपने को निचा मान ले,दीनता आ जाय,शांति मिल जावै|निर्भय और निरबैर हो जाय|मान बड़ाई में खुस न हो|उसका पर्दा द्वैत का उतर जाता है|सम दृष्टि हो जाती है|न जीने की ख़ुशी,न मरने का डर|उसे के यहाँ और वहां,जो भीतर है वही बाहर देख पड़ता है|
प्रश्न १२.महात्मन,अनेक कारणों से मन अशान्त रहता है,यह कब और कैसे शांत होगा?
उत्तर-किसी भी देवी देवता का जप पाठ मन लगाकर किये बिना शुभ काम नहीं होता|श्री कबीर दास जी ने कहा है की १ घडी हर की तो ५९ घडी घर की|लेकिन मन तो १ घडी भी नहीं लगता|
वह मौत और भगवान को भुला है|लोग रोज मरते और पैदा होते देखकर भी हम समय,स्वांसा और शरीर अपना मानते है,यही भूल है|उसके दिमाग में यह बात घुसी है की हम नहीं मरेंगे|जो सबका भला कहता है वही आदमी,आदमी है|जो केवल अपना भला चाहता है वह आदमी नहीं है|उसकी गति नहीं होती है|क्योकि उसमे दया धर्म नहीं है|
प्र्श्न१३-प्रभो,दया धर्म की क्या महिमा है?
उत्तर-परमारथ और परस्वारथ दो दल है|परमारथ अर्थात ईश्वर को प्राप्त करने हेतु पूजा पाठ,जप ध्यान करना|परस्वार्थ-दया धर्म करना|जो दोनों डण्डा पकड़े हैं उनका दर्जा बड़ा ऊँचा है|कोई भूखा प्यासा आ गया,तुम पूजा पाठ करते हो,दूसरा कोई वहां नहीं है,तो तुम फ़ौरन उठ कर उसे भोजन दे दो|अगर प्यासा है तो उसे पानी दे दो|फिर आकर अपना नेम करो|दया धर्म सब धर्मो से ऊँचा है|
कबीर जी ने कहा है:-
तेरे दया धर्म नहीं तन में,मुखड़ा क्या देखे दर्पण में|
दया धर्म को प्रकट करते हुवे अन्य भक्त ने लिखाया है:-
वजहन जग में आईके,करिये न तू मान |
दया धर्म नहीं छोडिये,जब तक घाट में प्राण||
प्र्श्न१४-प्रभु कल्याण मार्ग कैसे मिल सकता है जिसमे लोक परलोक बन सके?
उत्तर-कल्याण मार्ग में १ माला गायत्री,१० माला ओंकार मन्त्र जपे जाते हैं|फिर ध्यान किया जाता है|तो उसकी धुनी खुल जाती है जो सब लोको से जर्रा जर्रा से,रोम रोम से हो रही है|साधक को सुनाई देती है|तब ओंकार प्रकाशमय शामने छा जाता है|फिर विसाल ह्रदय की जरुरत है|माला की नहीं,न हाथों की,न आँखों की|
प्रश्न १५-भजन करते समय बड़ी अशांति रहती है,कल्याण मार्ग बताओ|
उत्तर-भजन में बाधा पड़ना स्वभाविक है|गाँधी जी को गोली लगी|शम्स तरवेज की खल खिची गयी|ईसा सूली पर चढ़े|जितना बाधाओं को सहन करते जाओगे,कल्याण मार्ग पर बढ़ते जाओगे|मन काबू किये बिना कुछ नहीं हो सकता|
फिर खफीफ का पद सुनाया गया|
पद:-सतगुरु से सुमिरन बिधि जानो नाम क जरी तार रहे|
दिन बने तो तप धन पावै,वरना यह दुश्वार रहे||
भीतर से दया नौकर पर रहे|
परस्वारथ बिन कह खफीफ,तन दोनों दिसि बेकार रहे||
प्रश्न१६-महाराज मनुष्य एक यंत्र है|उसको आप चलाने वाले है|
उत्तर-जिस रीती से ऋषि मुनि चले हैं,उसी रीती से चलना चाहिए|जितने संत भये है सबने अपने को निचा मान करके ऊँचा दर्जा पाया है|दीनता,शांति से इन्द्रिय दमन किया है|भजन का पुराना तरीका यही है|इसी तरह चलना चाहिए|
कबीर जी ने कहा है:-
मेरा मुझ में कुछ नहीं जो कुछ है सो तोर|
तेरा तुझ को सौपते,क्या लागत है मोर||
प्रश्न१७-गुरु कृपा से अन्तर के फाटक खुल जाते हैं पर साधक स्वयं मेहनत करै और प्राप्त करै|कुछ लोगो का मत है की मार्ग बता देने के बाद गुरु का कार्य समाप्त हो जाता है,आप बतावै क्या सत्य है?
उत्तर-गुरु वाक्य अनमोल रत्न हैं|उसे विश्वास करके पकड़ ले|अपना भाव विशाल होना चाहिए|बाबा रामसरन दास जी ने हमें लिखाया है:-
सत गुरु वचन भजन से बढिके|
सुर मुनि सब हमसे यह भाख्यो हम न कहैं कुछ गढ़िके|
ध्यान धुनी,प्रकाश,दशा,लय
श्याम प्रिय मिलै कढ़ी के||
जियते ठौर ठिकाना बनाओ,होय न सुनी लिखी पढ़ी के|
राम सरन कहैं अंत त्यागी,तन चलो सिंहासन चढ़ी के||
प्रश्न१८-सपन की मीमांसा(व्याख्या)करिये|
उत्तर-खराब स्वप्न पेट की खराबी से होते हैं|भुत प्रेत बाधा से,भुत वायु बिगड़ जाने से,बहुत चिंता के कारन|अच्छे स्वप्न से अच्छी गति होती है|
नानक जी ने कहा है:-
जागृत स्वप्न सुषुप्ति तुरीया|
आतम भूति की यह पुरिया||
एक स्वप्न जागते में होता है|एक स्वंत सोते में होता है और एक ध्यान में|यह आत्मा का खेल है|
अन्धे शाह जी का पद:-
करमा,कुबिजा,गडिका सेवरी प्रेम प्रभु से किना|
अंत त्यागी तन निज पुर पहुंची सिंहासन आसीना||
सीधी सदी चारौ माई,तीर्थ व्रत नहीं कीन्हा|
अन्धे कहे प्रीति विश्वास से,हरी को बस करी लीन्हा|४|
शुभ कारज करी लेव,जियत में,कर्म की भूमि बनी यहीं|
चाली कहै पदारथ चारिउ,इसी रीती से मिलत सही||
सारा खेल मन का है|
प्रश्न१८-मन कैसे लगे?
उत्तर-१)मान अपमान न लगे|
२)अच्छा अच्छा भोजन छोड़कर,रुखा भोजन करो|दोनों समय कुछ भूखे रहो|सबके दुःख सुख में शरीक रहो|बेईमान का अन्न न खाओ|बेखता कसूर कोई गाली दे मारे तुम रंज न करो चुप रहो|शुद्ध कमाई करो|भजन खुल जावेगा|
प्रश्न२०-भजन किस तरफ किस समय करैं?
उत्तर-३ बजे रात्रि से ११ बजे दिन तक पूरब मुंह,११ बजे से २ बजे तक उत्तर मुंह बाद में १० बजे रात्रि तक पश्चिम मुंह|और रेल में बैठे हो तो जिस तरफ रेल जाती हो उस तरफ मुख करके बैठकर जप करैं|
भगवान सर्वशक्तिमान हैं|वे सब कुछ कर सकते हैं|कर्मानुसार भगवान सबको देते हैं|अपनी विचार कुछ नहीं चलती|जै दिन के जहां का अन्न होता है भगवान रखते हैं|समय स्वांसा शरीर भगवान का है|जो अपना मानते है वह भगवान को भूले हैं|
प्रश्न२१-''(प्रसंग)पारिजात ''विधि भक्त पूछते है|
उत्तर-बहुत शुद्ध जिव होगा वही कर सकता है,सब नहीं कर सकते|व्यर्थ पूछते है|
प्रश्न२२-महापुरुष के संग से क्या लाभ?
उत्तर-प्रारब्ध (पूर्व जन्मो के कर्म फल)भोग भोगने की शक्ति प्राप्त हो सकती है|
प्रश्न२३-मन शुद्ध कैसे होता है?
उत्तर-मन शुद्ध जीभ को रोके होता है|जितना सदा हल्का भोजन होई,उतना ही मन हल्का रहेगा-भजन होगा|बिना इन्द्रिय दमन कुछ होगा नहीं|प्रेम भाव विशाल हो जाय,तब कोई बात नहीं|
प्रश्न२४-हम सब आपके है|आप की कृपा से जो होगा,सो होगा|
उत्तर-बिना पंखा के डुलाये हवा नहीं मिलती|जो कहा जाय उस पर चलने से काम होता है|कर्म भूमि है|सबको भोगना पड़ता है|देवी देवता आलस्य पर लात मारकर मन से जबरदस्ती लड कर अपना काम करके अजर अमर हो गए|यह बातें कायर की है की हमसे कुछ न होगा|मनुष्य का दर्जा देवी-देवता से ऊँचा है|जब मन लगाकर न किया जावेगा तब तिलक चन्दन माला कन्ठी भेष कुछ काम न देगा|फिर शरीर छूटने पर कौन सहायक होगा?मन के जरिये से जो होगा उसका फल जिव को भोगना पड़ेगा|राम जी ने एक बाण से बाली को मारा था|तब से २८ चौकड़ी (चारो युग की एक चौकड़ी)हो गयी है|वही बाली भील होकर द्वापर में १ बाण से कृष्ण भगवान को मारा|कहाँ तक लिखे|
प्रार्थना २५-आप धीरज दीजिये नहीं तो बुरा हाल होगा|
उत्तर-लगी जाव तब कृपा घुसरै|सब बात पर चल जाओ,मन उधर लगने लगे|हमारी आत्मा खुश होकर तुम्हारे अन्दर प्रवेश कर जाये|
प्रश्न२६-यह परमार्थ (भगवान की प्राप्ति)का विषय साधन साध्य है या कृपा साध्य?
उत्तर-विश्वास है तो कृपा साध्य ,न हो तो साधन से|
जिसका अपने गुरु पर अटल विश्वास है,उसका कोई काम रुक नहीं सकता,उसका सब काम आपै हो जाता है|
||श्री महाराज जी की जै श्री मानव धर्म प्रसार की जै||
||श्री महाराज जी का तुच्छ भक्त ||
संतोष कुमार वर्मा
ग्राम-जखनियां
पोस्ट-जखनियां
जिला-गाजीपुर
(उत्तर pradesh)
9889150859,9807512140
No comments:
Post a Comment