भैंस का सिंग-भैंस का सिंग|


३०८-भैंस का सिंग-भैंस का सिंग|
        उछरो बूडो-उछरो बूडो |
        गपकुआ-गपकुआ |
        दुवरचोत वक्त वे वक्त नहीं समझता|
           थैली-थैली
यह(मन्त्र)अपढ़ भक्तो के द्वारा जप क्र शिद्ध किये गए हैं|
इनके अर्थ-
"भैंस का सिंग-भैंस का सिंग"  एक अहीर को एक साधू ने बताया |उसके पट खुल गयें |उसका नाम सिंगा दास हो गया| 
भगवान ने लक्ष्मी जी को बताया-की हमारा यह नाम "उछरो बूडो-उछरो बूडो"
कृष्णावतार का है|जब सखाओ के साथ यमुना जी में नाक दबाकर डुबते फिर निकल आते-तब नाक छोड़ देते थे,यह नाम तब का है|
और यह ''गपकुआ ''नाम तभी का है, हम छोटे पर खेलते खेलते खाना भूल जाते थे,तब यशोदा जी दाल भात घी सानकर कहती आ रे मोरे गपकुआ-यह कौर गपक लेव |
हमारे ननिहाल में नानू अहीर था|उसने सुना ईश्वर सर्वत्र है,तो बीएस एक थैली लेकर ''थैली-थैली''करने लगा|सब लोग हंसा करते थे|तब हम १२ बर्ष के थे|१५ दिन बाद राम जानकी,एक एक बिता के छोटे स्वरुप,निकल पड़े|सब लोगो ने देखा|सबके मुंह लटक गए|श्रद्धा विश्वास से मन रुक जाता है|
३०९-जब तुम्हारे सौ जूता मरे जाय,रंज न करो-तब सब देवी देवता मिलने लगें |यह कुंजी भजन में सफलता मिलकर,भगवान की विशेष कृपा मिलने की है|
३१०-पद:-सिद्धा जल ही में रहै,कमल भेक अरु मीन |
                मीन भेक जान्यो नहीं,भ्रमर आय रस लीन 
अर्थ:-संत सिद्धा दास जी कहते हैं की जल में कमल,मेंढक और मछली एक साथ रहते हुवे भी मेढक और मछली उस कमल के रस व महत्व को नहीं जान पाते पर भौरा दूर से आकर कमल के पराग की सुगंध ले जाता है| 
भाव:-इसी प्रकार महापुरुषों के समीप रहते हुवे भी प्राणी महापुरुषों के दिव्य गुणों से परे रह जाते हैं-और दूर से आकर श्रद्धालु भक्त लाभ उठा जाते हैं|
३११-पद-पढना,सुनना,लिखना न फले,
              जब अमल नहीं उन बातों पर ,
              जब तन छूटी तब पड़ी,
             पिस जैहों जमन की लातों पर|
३१२-पद-कबिरा माला काठ की,कही समुझावत तोही|
               मन को तो फेरत नहीं,कहें फेरत मोहि||
३१३-भजन करने वाला चुप रहकर साधन करै,मान अपमान को हटा दे,तब भजन होता है|भक्त जाने भगवान जाने|
३१४-एक हस्त लिखित पत्र की नक़ल:
संसार भोगने की भूमि है,सभी को कर्म का फल भोगना पड़ता है|जो अपने इष्ट देव पर दृढ़ता से आरूढ़ है,वह संसारी कष्टों को हँसते हँसते सहन कर लेते हैं|भगवान का जिव है,भगवान का शरीर है,इस वाक्य का ज्ञान होते हुए -हमेसा मन में बल पैदा होता रहता है|
३१५-आसन विधि:-
सीना मस्तक सम करै,कमलासन ले धार|
नेत्र मूंद मन रोकिये,तब मिलिहै सुख सार||
३१६-कपडा पहिने तिन बार,बुद्ध,बृहस्पति शुक्रवार|
३१७-किसी देवी देवता का सहारा लेकर विश्वास न रखना महामूर्ख का काम है|हमने फ़ैजाबाद में एक मुसलमान अबू और उनकी औरत को खाली कलमा बताया था|दस तस्वी(माला)रोज जपते थे|वह कई हजार के करजी हो गए थे|दो लड़के एक लड़की सयाने हो गए थे|चार चार दिन खाने को नहीं मिलता था|पानी पीकर रहते थे|उसी जप से कर्ज वाले चुप हो गए|पक्का उसमे खपरा छपवा दिया,जो ६० आदमी बैठ सके|धीरे धीरे काम बढने लगा|लड़का दार्जी का काम करके सिखने लगा|लडकी की शादी हो गयी|मियां से अधिक बीबी पर दया हो गयी|सब देवी देवताओ की,जो लिखने के बाहर है |बड़े बड़े पंडितों के होश उड़ गए|
३१८-जौ,मूंगा,सांवा तिन्नी,पसाई के चावल देवान्न है|व्रत में अन्न से आधा पैसा खर्च हो,वही खाय|देवता (अपने इष्ट में)सुरती लगी रहे-यही व्रत है|
३१९-चोर शांत हो जाय,मान अपमान न लगे,तो जानो शक्ति आ गयी|
३२०-भगवान इतने सस्ते नहीं |भक्त होना बड़ा कठिन है|जियते मर जाना-तब जियते मुक्ति,भक्ति,देवता संग खेलना-सब कुछ जीते जी हो जाता है|इसमें शांति,दीनता की बड़ी जरुरत है|प्रेम की जरुरत है|
३२१-अपना भविष्य अपने हाथ में है,भाव बिना गति नहीं|मन्त्र लेकर अभ्यास की जरुरत है|
३२२-सबेरे डोल-डाल जाकर स्नान करके तब भजन ध्यान में बैठे|
आलस्य नहीं रहता|आलस्य रहने से वायु बिगड़ जाती है|
३२३-वचन मान ले-बीएस कल्याण हो जाय|देखू काम भगवान और देवी-देवताओं(को),और हमारे पसंद नहीं है|न कहने की जरुरत न लिखने की जरुरत है|अपना भाव और विश्वास अटल रखने की जरुरत है|
३२४-मन्त्र स्वत:शक्ति स्वरुप है-उसमे स्वत:शक्ति है|
३२५-जिसका अगाध प्रेम होगा,उसी को भगवान मिलेंगे|बिना इन्द्रिय दमन काम न बनेगा|२ बजे उठे तब काम बनेगा|दुनियां जागे मन भागे|
३२६-चोट नहीं लगती तब तक भजन नहीं होता|
३२७-मन लगने का उपाय:-
कुधान्य न खाय,अपनी नेक कमाई का सदा सूक्ष्म भोजन(खाय)सदा वस्त्र पहने| 
३२८-अपनी विचार कुछ नहीं चलती|जै दिन का,जहां का अन्न जल होता है-भगवान रखते हैं|समय,स्वांसा,शरीर भगवान का है|जो अपना मानते हैं वह भगवान को,मौत को भूले हैं|

३२९-एक कन्या को ससुराल में कष्ट मिलने पर कन्या के पिता को समझाना:-
जैसा होनहार होता है वैसी बुद्धि हो जाती है तुम्हारा कसूर नहीं है|लडकी शंकर जी का मंत्र जपै मन लगाकर,सब काम हो जावेगा|उसकी खातिर करने लगें|सारा खेल मन का है|यह भोग पुराना है|उसको भोगने से छुट्टी हो जावेगी,सुखी रहेगी|तुम बेकार चिंता करते हो|इसका असर लड़की पर जाता है|
३३०-साधू के लक्षण :-
जब हम १२ वर्ष के थे,तब हमारे गाँव में बल्दी सुनार थे|उनके घर में ईस्वरदिन ,शम्भू,भगवानदीन,गिरजाद्याल थे|सब साधू सेवा करते थे|गाने,बजाने की शौक थी|एक बूढ़े साधू हनुमान जी के भक्त थे,उनके साथ ४ नौजवान साधू आयें|उनके यहाँ महीनों रहा करते थे|एक बार रात में कई दुष्ट हांड़ी में मैला भरकर अद्धा(आंगन)पर आधी रात में फेंका |गर्मी के दिन थे,हवा चलती थी,और सब अवली(छत)के निचे थे|अध्धा भी उसी के निचे था|सब सो रहे थे,हांड़ी फूटी|बाबा छिप गए,अध्धा भी छिप गया|बहार के साधून(साधुओं)पर भी छीटें पड़ी|सब जग पड़े|पास में कुँवा था,तालाब भी था|सब नहाये,सुबह अध्धा धोया गया|भुत लोग सुने आ गये|बाबा ने कहा-इस गाँव में हम कई बार आये हमें कुछ भी न मिला|अबकी भगवान ने हमारी इच्छा पूरी कर दी|हम कैसे इन लोगों से उद्धार होंगे|धन्य हैं इस गाँव के लोग|तब चार साधू जो थे,कहें-महाराज,आप के बदौलत हमें भी कुछ छीटें मिल गये-हमे उतना ही प्रसाद बदा था|फिर कभी किसी ने नहीं बहाया| बाबा कई बार आये फिर गाँव के सब लोग आये,दर्शन करने लगे|ऐसे सहन शील संत थे|सब साधून के लक्षण है|
३३१-(गुरुदेव का जन्म स्थान)गाँव ईश्वरवारा जि० सीतापुर डा०(डाकखाना)सदरपुर है,तहशील सिघौली,परगना महमूदाबाद है|
३३२-दोहा:-अपमान को सहकर,सन्मान जो करै|
                 अंधे कहे सच्चा भगत,जियतै वह तरै||
३३३-कर्मानुसार भगवान सब को देते हैं|"मुस्लिम चरित्र"(पुस्तक)में भगवान अबू हसन से कहे हैं-अबुहसन मेरी आज्ञा में सदा तत्पर रहना,क्योकि मै सदा जीता जगता हूँ|मै जिस तरह राखूं उसी तरह रहे|वही हमारा भक्त है|तो मै उसकी इच्छा से अधिक देता हूँ|जैसे मेरा नाश नहीं,वैसे भक्त नाश नहीं है|उसे अविनाशी स्वराज्य देता हूँ मै|मुझमे उसकी सुरती लगी रहे|यहि भजन है|जैसे मै मृत्यु से परे हूँ,वैसे वह हो जावेगा|  


३३४-यह जिव और शरीर भगवान का है|इसलिए"जा बिधि राखै राम-ता बिधि रहिये"के सिद्धांत को मानने वाले,कभी किसी प्रकार की चिंता नहीं करते|भगवान ने अपनी प्रारब्ध के अनुसार जो दिया,उसी में सुख संतोष मानते है|जो तुम्हारा है,वो निश्चय रूप से प्राप्त होगा|इस विश्वास को हृदय में रखकर अपने कर्तव्य में आरूढ़ रहो|कर्तव्य निष्ठ,भगवान को बहुत प्रिय है-भाव ही मुख्य है|भाव ही समीपता है|भाव रूपी बेतार के तार से,भगवान के दरबार में क्षण क्षण का समाचार पहुंचता रहता है|इस मशीनरी को श्रद्धा-प्रेम,विश्वास रूपी तेल में सिंचन करता रहे,ताकि उसमे आलस्य,लापरवाही और अविश्वास रूपी जंग न लगने पावे|जंग लगी और मशीन रुकी|इसके लिए जीवन पर्यन्त चौकन्ने रहना पड़ेगा|
३३५-दिली शौक वाले से ही भजन हो सकता है|तब भगवान शक्ति देते हैं|
३३६-मन बड़ा बदमास है-पानी से ज्यादा शरबत,शरबत से ज्यादा दूध पिता है|रोटी से ज्यादा पूरी खाता है,बढियां चीजें ज्यादा खाता है|रुखी,सुखी खाने की पेट में जगह नहीं है|चार अक्षर से ही-शिव जी के मन्त्र से,तिसन हजार के मकान बन गये|अनेकों स्त्री जो पढ़ी नहीं थी,खटिया में पड़ी पड़ी प्रेम से जप करके,सब काम बना लिए|मन लग जाय|देवता गुरु भगवान को पकड़ कर फिर चिंता न करै|भगवान दिन दयालु हैं-दीन बन जाओ|
३३७-अपनी नेक कमाई का सादा भोजन-थोडा खाओ,सब जीवो पर दया करो|घर में रहकर पवित्र जीवन बिताओ|जिस देवी देवता से प्रेम हो,उसका प्रेम से मन लगाकर जप पाठ करो| 
३३८-किसी,देवी-देवता को पकड कर धुकुर-पुकुर करना,बड़े कायर का काम है|फिर देवी देवता सहायता नहीं करते|
३३९-हमदो पाठ ''सुखमनी साहब''के करते थे|१८ की उम्र में ४ साल घुमे हैं|एक धोती,४ लगोटी,१लोत डोर और १ सोटा रखते थे|किसी के दरवाजे नहीं जाते थें|जो पति कडू न हो,या गूलर की गदिया खा लेते थे|चार चार दीन पानी पीकर घूमते थे|बड़ा बल था|जादा गर्मी कुछ न लगती थी|
३४०-जैदीन का जहां का अन्न जल होता है-वहां भगवान भेजते हैं|वैसे न कोई जा सकता है,न कोई ले जा सकता है|
३४१-बेमन पाठ,पूजा,जप,कीर्तन,कथा सुनना ,या सुनाना भगवान के यहाँ खता में नहीं लिखा जाता है|वह गैर हाजिर में भर जाता है|साधू होकर भेष बदनाम करवाता है|दया-धर्म नहीं,दीनता शांति नहीं,मन काबू नहीं,तो देखाऊ भजन से कैसे पर होगे|यह तो भूसा परोसना हुआ|सूप से भूसा पछोरता है तो वह उड़ जाता है|जो पुराना संस्कारी है,उसे तो भगवान जल्दी मिलते हैं|सादा भोजन सतोगुणी करना चाहिए |तमोगुणी भोजन से भजन नहीं हो सकता|तमोगुणी क्रोध बढ़ता है|रजोगुणी(लहसुन,प्याज,मिर्ची,कडू मुली)काम वासना पैदा करता है|यह भोजन नरक ले जाते हैं|ईश्वर साधक प्रेमी इसको त्याग दे|तभी भजन करके पार हो सकता है|
३४२-आगे(प्राचीन काल में)ऋषि लोग सेवकों को बताते थे की शाम को ५ बजे अन्नपूर्णा देवी,लक्ष्मी जी का नाम लेकर दिया बार (जला)दे|सुबह स्नान करके अन्नपूर्णा लक्ष्मी जी का नाम लेकर दाहिने हाथ से सामान निकाले,तो १० दीन का सामान का सामान १५ दीन का हो जायेगा|एक (मूर्ति)जन निकाले|
३४३-चरों धाम घूमों,मन शान्त न होगा|एक साधू ४५ वर्ष घुमे परन्तु मन में शान्ति न आई|जब बड़े महाराज के पास आये,कहा-महाराज शान्ति न हुई,तब महाराज ने मन्त्र दिया|बिना दीनता-शान्ति लाये,मन में शान्ति नहीं आती|बिना खता कसूर कोई मुते,क्रोध न करे,तब शान्ति मिलेगी|
३४४-(पांचो)चोर मन काबू हो,वह कर सकता है|जिसका द्वैत घुसा है की हम,हमारे परिवार वाले ठीक रहें,बाकि दुनियां मरै,हमसे क्या मतलब ?वह शुभ काम,पर उपकार,दया धर्म नहीं कर सकता है|उसे ग्रन्थ दिखाना न चाहिए|व सुनाना बड़ा हानी है|
३४५-पर उपकार के सामान कोई शुभ कर्म नहीं है|अपना तकलीफ सहे दूसरों को आराम पहुँचाए|
३४६-भजन चाहे जितना हो,दुसरो को यदि तकलीफ पहुंचेगी,तो सब व्यर्थ|
३४७-हमसे दुर्गा जी ने कहा है,की शुभ काम में दीन कोई भी हो|तब से हम सब दीन(मन्त्र)देते हैं|संसारी काम में साईत(muhurt विचार)की जरुरत है|
३४८-दो साधू थे,एक राम राम,दूसरा श्री राम श्री राम जपते थे|श्री राम जपने वाले ने कहा-श्री लगा लिया करो|वे बोले-श्री लगावे,राम न निकल पाए,शरीर छुट जाये तो?
३४९-बढियां भोजन,बढियां कपडे से भजन न होगा|
३५०-तपसी जी की एक आदमी ने दाढ़ी,मोछ नोच ली,खून बहने लगा|महाराज बोले-का खैहो (क्या खाओगे)भाई?यह भजन है|
३५१-बड़े महाराज की अंगुली एक ने चर चर चबा ली,महाराज बोले मिठाई खवाओ भाई|
३५२-नेक कमाई का अपना सादा भोजन करे,सादे कपडे पहने,सब जीवो पर दया करै-तब भजन होगा|
३५३-सत्य पकडे बिना सत्य की प्राप्ति नहीं होती|
३५४-चमार,पासी,मेहतर सबके चूतर धो डाले|जिनके लड़का मल मूत्र करते,माँ बाप घिनाते |कहते-महाराज,भगवान उठा ले|मारे बदबू के दिमाग फटा जाय|उसके हम टट्टी उठाते,साफ करते|
३५५-कसाई भूखे रहते,महाराज कहते दे आओ|सबमे भगवान हैं|अपने को निचा समझने से ऊँचा उठ पाता है|
३५६-साधक मान बड़ाई पर लात मारे|
३५७-दुनियां से दोस्ती कर लो या भगवान से-दोनों में से |ऊपर से दुनियां -भीतर से भगवान से|तब काम बनता है|
३५८-भगवान की लीला भगवान जाने|
३५९-एक बार रॉय दो बीएस काम बन जाय|
३६०-उनका नाम है अधम उद्धरण|
३६१-भगवान के नाम में बड़ी ताकत है|
३६२-गुण अवगुण संसार से भरा है|गुण ग्रहण कर लो,अवगुण छोड़ दो|
३६३-राम भजन अति दुर्लभ|बहुत कठिन है|जियते में मर जाना परता है|कोटिन(करोणों)में कोई (एक)करता है|
३६४-भजन घर ही में होता है|हमें ५२ साल यहाँ हो गए|सब पेट पलते हैं बातें सिखातें हैं|दुनिया का काम अंध(अँधा)है|सहन शक्ति नहीं है|दीनता,शान्ति,दया,धर्म नहीं है|भजन कैसे हो?भजन,सेवा सबकी करने से होता है|हमने सभी जीवों का मल मूत्र धोया है|उसी से कुछ प्राप्त है|तमाम जाती के औरत मर्द नंगे,मैला में परे रहते थे|कोई घर के नहीं छूते थे|हमें हैजा पकड़ लेगा|हम सब dhokar kapda pahnate दवा देते|जब पेसब उतरती तब हैजा चली गयी|आगे ऋषि लोग सेवा धर्म कराते थे तब भजन खुल जाता था|
३६५-तुम हमर तकलीफ करते हम तुम्हार कर देते,बीएस यही है|मन की बदमासी कोई रोक नहीं पते|पानी से जयादा शरबत,शरबत से ज्यादा दूध,रोटी से ज्यादा पूरी,पूरी से ज्यादा पकवान खाते हैं|
३६६-एक मेहतर ६ कोस पर यहाँ से रहता था|सुन लिया था भगवान सर्वत्र हैं|बस झाड़ू लगाने लगा|वो दीन रात बगल में झाड़ू झाड़ू दबाये रहता|कोई पूछता,कहता-राम जी के मेहतर हैं|(उसको)राम जानकी प्रत्यक्ष हो गए|
३६७-जिसकी जगह नहीं है,परिवार सो जाता है तब वह रात्रि में उठ कर अपना काम करते हैं|जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं है|मन को काबू करना खेल नहीं है|बड़ी सहन शक्ति की जरुरत है|बिना प्रेम के जिव ईश्वर का मेल नहीं होता|
३६८-४० स्त्री २१ गृहस्थ बड़े गरीब भजन करते हैं|कुछ पढ़े नहीं|राम राम कहते हैं|सब कुछ होता है|जितना जाने उसमे संतोष कर ले|
३६९-पुन्य से भोग,पाप से रोग|अपने अपने कर्म के अनुसार जिव पैदा होते,खाते,पिटे,दुःख सुख भोगते है|
३७०-जो इन बातों को नहीं समझता वह नहीं मानता|वह मौत और भगवान को भुला है|वह समय,शरीर,धन,मकान,लडके,परिवार सब अपना मान बैठा है|ऐसी भगवान की माया है|उसी में आसक्त कर दिया|१ घडी हरी की तो ५९ घडी घर की|(तब)भगवान माफ़ी देते हैं|१ घड़ी नहीं भगवान में मन लगता|
३७१-जीवो पर दया,सिटी चुंगा (अन्न)खिलाते हैं|यह सब भजन की शाखा है|
३७२-पद:-राम नाम सुमिरन करो,रखो सबसे मेल|
                dina nath dyalu से,हो जावेगा मेल||
३७३-भक्त की परीक्षा हजारो दफे (हजारो बार)भगवान करते हैं|अपना तकलीफ सह लो दुसरो को आराम पहुँचाओ,इसके समान कोई भजन नहीं है|
३७४-शुभ काम करने लगे बस दर्शन होने लगे|रस्ते में किल कांटा पड़ा हो तो उठा लो|सबकी सेवा करो,मन लगने लगेगा|
३७५-चाहे जितना पाप किये हो,अगर मरते समय राम,कृष्ण,गोविन्द कान के सुन लो,तो माफ़ हो जाता है|
३७६-भजन समत मन निरंकार (भगवान)में लीन रहे|
३७७-खान पान सदा हो|तर माल खाने से भजन न होगा|४ बात बेखता बेकसूर कोई कहे तो हाथ जोड़ दो|कोई तारीफ करे तो खुश न हो,कोई बैर करै रंज न हो|
३७८-५ माला सुबह पूरब मुंह,५ माला शाम पश्चिम मुंह करें|सहन शक्ति की बड़ी जरुरत है|घुर बन जाओ|
३७९-(व्यापार में)थोड़े नफे(मुनाफे)पर बरकत भगवान बहुत देते हैं|
३८०-एक भक्त के लिए:-
इनको साढ़े ८ की गाड़ी से भेज दो|तुम्हारा मन जैसा कहे रहने को तो रुको न कहे तो जाओ|इन सब को तकलीफ नहो तुम तकलीफ सह लो|तब तुम्हारी भक्ति ठीक भगवान के यहाँ लिखी जावेगी|
३८१-शांति,दीनता दोनों माता हैं|इनकी गोद में रहने से                        
त्याग,प्रेम,भक्ति,श्रधा,संतोष सब ह्रदय में आ जाते हैं| 
३८२-तिल भर भी अन्दर से बैर नहो|सब जीवो में भगवान हैं|दया सब जीवो पर करना|सेवा परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं|तीर्थ करना,व्रत करना,उपवास करना,दान पुण्य करना,हमारे पास आना,भजन करना बेकार है सहन शक्ति जब तक होगी नहीं|
३८३-भक्त के साधक के लक्षण श्रधा प्रेम से सुनो,उस पर चलो तब तुमको सुख मिले|धन,धान्य से घर भरपूर रहे|जो बताया जा रहा है उस पर विश्वास कर लो |काम बन जाय| 
३८४-किसी से कहा:-
तुहारा पैदायसी दोष है|कर्म से नरक,कर्म से शुभ गति होती है|थोड़े दिन जो बताया है,मन से जबरदस्ती करके चल परो,कल्याण हो जाय|रोज चिड़ियाँ को आंटा,गुड चीटियों को दिया करो|तुम घर की मालकिन हो,सब को खुश रक्खोगी,भगवान तुमसे खुश होंगे,आशीर्वाद भेज देगे|
३८५-मन बदमास है|मान,अपमान,क्रोध,कसाई,छल कपट,बैर,ह्रदय में रहने से पूजापाठ भजन सब जुर्माना में कट जाता है|तुम अपने मन की मानती हो|किसी की और जो हम बताते हैं उस पर नहीं चलती हो|रोने से आँखे,दुखी रहने से शरीर और ख़राब हो जावेगा|जो मौत और भगवान को भूले हैं,मनमानी करते हैं|सत्य के बराबर कोई तप नहीं|दया भीतर से रखने के बराबर कोई धर्म नहीं|
३८६-तुम्हारे दुःख से हमें दुःख होता है|
३८७-भगवान के हुकुम में रहे|फिर सब जगह बैकुंठ ही है|जो मनमानी करते हैं,दुखी रहते हैं,मरने पर नरक होता है|कुछ ऐसा मान कर रहो|
३८८-जब सहन शक्ति आ जावे,मन खुश,शांति रहने लगे|तब आओ कुछ बतावे|चोर शांत हो जाये|आंखी कान खुल जाय|जियते तर जाओ,अच्छी गति होगी|
३८९-मन से उठते बैठते चलते फिरते घर का सब काम करते समय,"राम राम"कहा(कहो)|
३९०-बुद्धि पलटे(पलटने)के मन्त्र दुर्गा जी का है|तुम चिंता छोड़ कर मन लगा दो|सब काम आशीर्वाद से हो जाय|हमें यह बताने की भगवती ने आज्ञा दी है| 
३९१-हम जबसे रामसिंह पर सर मान दिया और महाबीर पर धड माना,डाक्टर ज्योतिषी जबाब दे चुके थे|एक ९ वर्ष रहे एक १० वर्ष रहे|तब भगवती ने कहा-सर धड हमारा हो गया|तुम पूजा, पाठ,दान जप,कीर्तन,कथा बता दिया करो|जो सरधा विश्वास से करेगा उसका भला होगा|तब से उसी बात को बताते हैं|जो मन लगाकर करता है उसका काम हो जाता है|
३९२-सन्यास बहुत कर्रा (कठिन)काम है|भजन करने से गति होती है|
३९३-भजन करने वाले को अपनी जीत प्यारी नहीं होती,अपनी हार प्यारी होती है|
३९४-भगवान को सच्चा भाव पसंद है|
३९५-नाम में लग जाओ,जुट जाओ|
३९६-नानक जी ने कहा:-
पंडित सो जो मन को बोधे|
राम नाम आतम में सोधे ||
३९७-पैहारी जी ने कहा:-
पंडित परम तत्व को जाने|
        करी पावे तब ठीक ठिकाने|
पर बोधे जो शरनी में पावै| 
सो पंडित उत्तम गति पावै||
३९८-फलाहार,दुधाहार से लाभ नहीं,सच्ची कमाई और सदा भोजन स्वाद रहित और कम खाना चाहिए|फलाहार,दुधाहार महंगा भी पड़ता है|और मान अहं की आशंका भी रहती है|
३९९-अनमोल वास्तु दे दी जाय,गांठ बांध कर धरी(धरे)रहेगा|क्या लाभ होगा?
४००-एक माता को लिख कर दिया:-
जिस देवी-देवता से प्रेम हो,घर पर रहकर उसका नाम जप करो|सब घर पर ही मिलते हैं|जितना खर्चा तीर्थ में जाने से होता है|उतने की खिचड़ी १ सेर २ तौला नमक ४ पैसा गरीबों में बाँट दो|अगर विश्वास होगा घर पर ही प्रगट होकर दर्शन देंगे|
४०१-भगवान में प्रेम होगा-बेखता कसूर कोई गली दे तुम रंज मत करो|बस भगवान मिल जाय|तब घर का काम भी ठीक रहे,यह कुंजी है|
४०२-देवता गुरु को पकड़कर फिर चिंता न करे|भगवान दिन दयालु हैं|दिन बन जाओ|
४०३-जब तुम्हारे १०० जूता मरे जाय तुम रंज न करो,तब सब देवी देवता मिलने लगेय्ह कुंजी (से )भजन में सफलता मिलकर भगवान की विशेष कृपा मिलती है|
४०४-महाराज जी के चरणों में कुछ कड़े दाने थे|कोई दवा लगता तो कहते हम अच्छा न होने देंगे|दवा चाहे जितना लगाओ|हमारे यह मेहमान हैं|
४०५-घर में रहकर भजन करो|मन साधू हो जाय तब साधू बनना|हमे ५१ वर्ष हो गए|८० की उम्र है(१९७३ में)अपने परिवार का पालन करो|सच्ची कमाई तब भजन होता है|जिस देवी देवता से प्रेम हो उसमे थोडा मन लग जाय,देवी-देवता मिलने लग जाय|
४०६-जंत्र-मन्त्र के लोगो ने तमाम ग्रन्थ बनाये|वेसब हजारों वर्ष से नरक में पड़े हैं|
४०७-एक साधू था काशी में|वह अमजाद(शिद्धि)से कचहरी में फाईल निकाल कर जला देता था|ऐसे काम करने वालो को नरक होता है|पर डॉ नहीं है|
४०८-भैया राम राम करो,थोड़े दिन में चलना है|
४०९-मुड मुड़ाने या जटा रखने से क्या लाभ जब तक मन न लगे|
४१०-१० बजे सोवे ३ बजे उठो १ घन्टा सौच स्नान करके,सूर्य न निकले साधन समाप्त हो जाय|
४११-एक व्यापारी भक्त के लिए:-
मुनाफा कम लो,बिक्री होने लगेगी|
४१२-नेक कमाई,शुद्ध भोजन,ब्रह्मचर्य,परहेज करने पर रोग जाता है|
४१३-इन्द्री में १ ही अवगुण है जिव्हा में अनेक हजार अवगुण है|
४१४-बीमारी में हाथ पाव धो ले कपड़े बदल ले|२ बूंद गंगा जल मुख में डाल ले|परन्तु स्वास्थ्य अच्छा हो(तो)स्नान कर ले|(न करने से)बदबू भी आने लगती है|
४१५-घर में सबका ताल मेल एक हो|
४१६-सेवा वही है जो आज्ञा हो पालन करे|स्नान करना,पैर दबा देना यह सेवा नहीं है|
४१७-यहाँ की इज्जत पर लात मारे तब वहां की इज्जत मिले|साधक तारीफ न चाहे|भगवान जाने तुम जानो|तब काम बनेगा|मन लग जाय काम बन जाय|
४१८-(बीमारी में)मल मूत्र से निपट कर कपड़े बदल दे|गंगा जल तुलसीदल रेणुका मुख में डाल ले|लेटे लेटे न माला हो सके तो मन में जपो|
४१९-ऐश आराम छोड़ देने पर भजन हो सकता है|
४२०-आडम्बर छोड़कर नेम टेम करना पड़ता है|
४२१-जिन स्त्रियों का पाणिग्रहण (विवाह)नहीं हुआ हो और युवा अवस्था को प्राप्त हो गयी और कामातुर होकर पर पति से भोग किया एक ही बार,वह फिर अगले ७ जन्मो तक तरुनाई(जवानी)में वैधव्य को प्राप्त होती है|इस पाप का उद्धार हरी नाम से ही हो सकता है|जब कोई सत पुरुष मार्ग सुझा देवे|
४२२-पुण्य से भोग,पाप से रोग|अपने अपने कर्म के अनुसार जिव पैदा होते हैं|खाते पीते दुःख सुख भोगते हैं|सब काम का समय भगवान बांधे हैं| 
४२३-कर्म प्रधान भाखा (कहा)गया है|कर्म से श्रेष्ठ,कर्म से भ्रष्ट|एक भाई जज,एक चपरासी है|सब में कर्म और स्वभाव अलग है|
४२४-मन इस शरीर को चलाने वाला ड्राइवर है|अच्छी जगह ले जाय तो जीव की अच्छी गति हो,खराब जगह ले जाय तो खराब गति हो|जो गेहू  बोयेगा तो गेंहू  मिलेगा,जो जहर बोवेगा तो जहर पावेगा|जो इन बातों को नहीं समझेगा व नहीं मानता,वह मौत भगवान को भुला है|समय स्वांसा शरीर,धन,मकान,लड़के,परिवार सब अपना माने बैठा है| ऐसी भगवान की माया है|उसी में आसक्त कर दिया|१ घरी हरी की तो ५९ घडी घर की|तो भगवान माफ़ी देते हैं|एक घडी नहीं भगवान में मन लगता है|
४२५-बगदाद इरान से मुसलमान अवध में आये हैं|पेड़ तरे(तले)एक लंगोटी(ही)में उम्र काटी है|कोई एक मुट्ठी जौ,कोई एक मुट्ठी चना से उम्र काटी है|ऐसे ऐसे भक्त १२ आये हैं|सब कुछ प्राप्त कर लिया है|दुसरे दुनिया का काम न जाना|हमारी पुस्तक में ७००-औरत मर्द हैं|उसमे बहुत अजर अमर हैं|
४२६-हमारे यहाँ ४० औरते,२१ घर वाले हैं|परिवार दार हैं पर भगवान की बड़ी  दया है|बाकि सब बनुआ भक्त हैं|कहने पर खुश हो जाय,वे अपनी तारीफ चाहते हैं|मान अपमान खाए लेता है|
४२७-अपने को सबसे निचा मान ले,वही भजन कर सकता है|हमसे हमारा पखाना पेशाब ठीक है|उसकी खाद बनती है|फल अन्न पैदा होते है|दुसरे का पेट बरता है|हम झूठे साधू पंडित बनते हैं|काल(मृत्यु )के गाल(मुख)में हैं|
४२८-जब दस्त पेशाब हो जाता है तब शारीर हल्का हो जाता है|आलस्य भाग जाता है|
४२९-जो भक्त सच्चे गरीब हैं वो हमसे बताते है-हमारे शरीर से सब देवी देवता निकलते हैं आप निकलते हैं|संग बात चित करते हैं|खाते पीते हैं,फिर हमारे शरीर में समा जाते हैं|हमने कहा-यह शरीर विराट है |अंधे मियां ने यह सब लिखाया है|अगर ऐसे ही सब हो जाय तो हमारी सृष्टि की कमी हो जाय|बड़ी भाग्य से ऐसे भक्त होते हैं|
४३०-बहुत कठिन काम है|बरछी की नोक पर चलना,छुरे की धर पर चलना,आगि में कूद परना सरल है|भगवान की तरफ झुकना,कोटिन में कोई एक कर पाता है|
४३१-अंधे मियां ने लिखाया है:-
शेर:हर जगह मौजूद है,पर वह नजर आते नहीं|
      मन के साधन के बिना,उनको कोई पते नहीं||
४३२-मन के संगी भूख,प्यास,जुबान,इच्छा हैं|यह सब चोर चालक हैं|पानी से अधिक सरबत,सरबत से अधिक दूध,रोटी से अधिक पूरी खाते हैं|अच्छी चीज के लिए पेट में जगह बनाएं हैं|रुखी सुखी के लिए पेट में जगह नहीं है|तब शुभ काम कैसे हो?बिना मन काबू भये गति नहीं होती है|मन तन को चलाने वाला ड्राईवर है|अच्छी जगह ले जावेगा तो ठीक काम होगा|खराब जगह ले जावेगा तो खराब काम होगा|सारा खेल मन का है|इसका फल जीव को भोगना पड़ता है|
४३३-शंकर जी का ४ अक्षर का ११ माला मन्त्र में आधा घंटा लगता है|मन लग जाने से संकर जी सब काम पूरा करते हैं|कई औरते मर्द इससे धनि हो गए|महा गरीब थे कुछ पढ़ें न थे|
"ऑँ क्लीं जूं स:"
११ माला से शंकर जी सब कुछ देते हैं|यह शिद्ध मन्त्र है|सिर्फ आधा घंटा लगता है|मन मन्त्र से भागे नहीं बस काम हो जाय|अमोघ मन्त्र है|अहीर,कुर्मी,गडरिया,मुराऊ जपते हैं|उनको सब देवी देवताओ के दर्शन होते हैं|पढ़ें नहीं हैं|
४३४-हम तो ११ बजे सोया करते थे|२ बजे उठते थे|अस्नान करके १ माला ब्रह्म गायत्री १० माला राम मंत्र ५ माला जानकी मंत्र जपा करते थे|यह जप रात्रि में होता है|तब काम होता है|दुनिया जगी मन भागी|
४३५-तमाम भक्त शंकर जी,दुर्गा जी,सरदा जी,गणेश जी,हनुमान जी का पूरक करके अजर अमर हो गए हैं|सब कहूँ(कहीं)जाने की सक्ति(शक्ति)है|जब अपने को सबसे निचा मान लो तब मिलते हैं|
४३६-व्यास जी ने कहा है:-
पर उपकार के समान दूसरा धर्म नहीं है|दो दल है:-परमारथ-अपने इष्ट को प्राप्ति कर लेना,(और),परस्वार्थ|दोनों में अपने को मिटा देना परता है तब सब देवी-देवता खुश होते है|
४३७-तुम जानो भगवान जाने,तब काम बनेगा|ढोंग से नहीं काम बनेगा|बहुत प्रेम से जपे,रात का काम है|
४३८-भोजन भी शुद्ध हो तब बुद्धि शुद्ध होती है|जैसा भोजन वैसा सुरस बनेगा,वैसा खून बनेगा धातु बनेगी|बिना शुद्ध भोजन के जप दान क्या करेगा?
४३९-जप पाठ पूजन हवन कीर्तन में मन लग जाने से आकाशवाणी होती है|काम हो गया,दर्शन होते हैं|यह खेल नहीं है|मन न लगने से सब गैर हाजिरी में लिखा जाता है|जब तुम बीमार हो तो तुम्हारा नेम हाजिरी में लिखा जाता है|जब ठीक हो और नेम न करो तो गैर हाजिरी में लिखा जाता है|
४४०-गद्दा बिछा ने से शरीर सुकुमार हो जावेगा|अब उम्र ८१ बर्ष ८ माह की हो गयी ऐसा करना ठीक नहीं|
४४१-लड़का,लड्किन के ब्याह में पांच बाते मिलान कर ले:
१)आपस का मेल
२)आयु
३)संतान योग
४)गुण
५)वरण(वर्ण)
यह पांचो बातें मिले तब शादी करै,जल्दबाजी में(शादी करने में यदि)लड़की को तकलीफ हो तो माता पिता,बिच वाले को नरक होता है|
४४२-भोरहरे(भोर होने के समय)का गर्भ चोर होता है,शाम का राक्षस,दिन का पशु,आधी रात का सांति (शांत),२ बजे रात का जबर शाधू होता है|५ साल की संतान माता के पाप से मरती है|पांच से ऊपर १४ साल की पिता के पाप से,बाकि उसके ऊपर अपने पाप से मरती है|सब ऋषि लिख गए हैं|स्नान और गर्भ में माता चोर बदमास देख लेने से,बालक पर बदमास का असर आ जाता है|
४४३-पहले(पुराने समय में)माता शुद्ध भोजन (करती थी)शास्त्रानुकूल चलती थी तब संतान उत्तम होती थी|पहले माता कन्या को(तथा)सास बहु को बता देती थी|यह खेती घर की है|
४४४-जब जिव गर्भ में आता है,तब माता नहा कर जिसे देख लेती है वही गुण औशत जिव में आ जाते हैं|हर एक जोनी में मन जीव के साथ वही रहता है|बिना देवता के आराधना के तन-मन में छिपे चोर शांत नहीं हो सकते,सब लुट लेते हैं|
४४५-औलाद गन्दी होने पर नरक होता है बाप को|
४४६-गेहूं,जौ,चना,मुंग,अरहर की दार,भैंस का घी,गाय का दूध,साग पालक,चौराई,परवल,चचेडा,जीरा घी से छौक दे और कुछ नहीं|भोजन के १ घंटा बाद महीन शौफ ३ मासे खाकर दो घूंट पानी पि ले फिर १ घण्टा पानी न पिए|भोजन के बाद शाम को भी उसी तरह सौंफ खाय|सौंफ सुखाकर रख ले डब्बा में|आंख की रौशनी कुछ दिन बाद बढ़ जाएगी|परहेज बराबर जारी रहे|
४४७-सिकंदर जब बीमार था ३२ की उम्र थी,हाकिम लोग जबाब दे दिए|तो कहा हमारे हाथ कफ़न के बाहर कर देना की सिकंदर खाली हाथ चला गया|और लास (लाश)हाकिम लोग कंधे पर ले जाय|वैसा ही हुआ|कबर पर सच्चे पत्थर लगाये गए|सोने के कठघरा में रेशमी कपडे बिछा कर इतर से तर करके|ऐसी कबर बनी जिसमे करोणों का खर्च लगा| 
सब बेगम फौज रोकर लौट गए|माता बैठी रोटी रही|तो आकाशवाणी हुयी की तू किस शिकंदर के लिए रोती है|इस जगह पर कोटिन सिकंदर दफ़न हो चुके है|तब माता की बुद्धि पलट गयी,यह तो मामूली बात है|
४४८-पद लिखाये गए है:-
उनचास कोटि पृथ्वी पर हम सब
अगणित बार मरे जन्मे ,तिल तिल जगह में|
४४९-हद हो गयी |दशरथ जी के डाह के लिए भरत जी ने जमीं खोदा तो १ पावा भर जमीन सरयू के किनारे बिल्व्हर महादेव जी (मंदिर)के पास मिली|भरत जी भगवान विष्णु के अवतार थे|तब चन्दन के चार खम्भे गाड़े गए|चन्दन की चिता कपूर सुगन्धित धुप गो घृत पर तब जलाये गए|
४५०-भैंस गाय न मरे:-
हर सनीचर को पीपर पर,१ चुटकी काले तिल,१ पाव पानी चढ़ावे और साम को तेल में बत्ती बारकर पीपर तरे धर आये|
४५१-एक ईस्वर प्रेमी के लिए सभी स्थल मंदिर और मस्जिदे हैं|सभी दिन शुक्र और सभी महीने रमजान है|वह जहां रहता है ईस्वर के साथ रहता है|
४५२-पद:-औरन को देखत भई,जिसकी शीतल छाती|
                जन्म सफल है उसका,प्रभु हैं उसके साथी|
४५३-रविया के पास दो रोटी थी,२ मांगने वाले आये,१-१ दे दी|फिर दो शिद्ध आये|किसी ने १८ रोटी भेजी,वापस कर दी|फिर रोटी आई|फकीर ने पूछा-वापस क्यों कर दी?बोली-१ देने से १० मिलती है,२ कम थी,अत:वापस कर दी|अब २० आई १०-१० खाओ पेट भर जायेगा|
४५४-कायर भजन नहीं कर सकते|हाथ पर कलेजा धरने वाला भजन कर सकता है|आसान नहीं|भोजनानंदी बनो या भजना नन्दी|
४५५-जितना भोजन कम होगा उतना शरीर हल्का रहेगा|काम हो जावेगा|
४५६-प्राण का लोभ छोड़े बगैर भजन न होगा|
४५७-ऊपर की सेवा से काम न चलेगा,सेवा अन्दर से होना चाहिए|
४५८-अब शरीर ऐसा हो गया है की बंद रहे ४ दिन न खोले|अँधेरे में लीला होती है|
४५९-हमने सब जातिं की सेवा मल मूत्र (सफाई)करी है|
४६०-अघाने (समर्थ)ब्राह्मण को न खवाये,भूखे को खवाये|
४६१-घर में जो तुमारे अधीन हो उनको खवा कर खाओ|घर में न खवा सको तो बाहर खवा दो|
४६२-दान पुन्य,पहले(पुराने समय में)देने वाले(तथा)लेने वाले ही जानते थे|अब दिखावा है|कोई भूखा हो खवा दो १० गुना मिलेगा गरीब को खवाने से १० गुना बढ़ेगा|
४६३-मुर्दा ज्ञान वाक्य ज्ञान इनसे फायदा न होई|
४६४-भजन तो घर में ही होता है|सबको खवा कर खावे|भिखारी आवे,दे|घर छोड़े भजन न बनी|घर छोड़े काम न बनी|घर छोड़ने से ढोंग है|
४६५-घुर बन जाओ,बिना कहता कसूर कोई चार बात कहे,सहन कर लो हाथ जोड़ दो|
४६६-भक्त को भगवान कोढ़ी,अँधा,लूला,दरिद्री-जैसा चाहे रक्खे-भक्त प्रसन्न रहता है|स्मरण ध्यान न छूटे|
४६७-मुद मुड़ने या दाढ़ी रखने,कपड़ा रंगने,दंड कमंडल रखने से कुछ न होई|
४६८-८ वर्ष में बालक का यज्ञोपवीत होना चाहिए|
४६९-जैसे कंकरीली,पथरीली भूमि में बिज डालना व्यर्थ है,वैसे हृदय में अभिमान,कपट,राग,द्वेष आदि विकार रहते हुवे जप तप पूजन पथ करना व्यर्थ है|अभिमान रावण है,कपट मारीच है इनको मारे बिना प्रभु से सम्बन्ध जुड़ नहीं सकता|अत :पहले अपने को सबसे निचा मान लो|सहन शक्ति की बड़ी जरुरत है|चार बात बेखता बेकसूर कोई गली कहे,हाथ जोड़ दे|कोई अपमान करे धक्का मारे,रंज न हो|तारीफ करे तो खुश न हो|
४७०-परोपकार के समान कोई भजन नहीं है|भगवान से दोस्ती करो या दुनिया से-हर दसा में सात्विक वास्तु का प्रयोग करो|नेक कमी का अन्न,हाथ पिसा आटा,मुंग छिलकादार दाल परवल,तरोई,चौराई,बथुआ,टिंडा,जीरा घी,से छौक दो|बढिया कीमती भोजन-कपडा,बड़े आदमी की संगत बुरी है|
४७१-सर्द(ठंडी)वाली चीजें पेसाब लाती हैं|बड़ी दस्त साफ़ नहीं लाती|कडुआ खट्टा,दिल,दिमाग की ताकत खिचती है|पालक पेट साफ रखती है|मीठी चीजें मन और जुबान को लबरा (लालची बना देती है,जिससे मन भजन में बाधा डालती है|
४७२-शुद्ध भोजन से सब बीमारी हट जाती है|
४७३-आंख पिराती(दर्द करती)हो (तो)गरी टुकड़ा करके पेट भर खवा दो बाद में मिश्री|५० वर्ष तक आंख न पिरावे| 
४७४-शौफ के सेवन से आंख की रौशनी कभी नही जाती|बहुत अच्छी दवा है|पुराने वैध हकीम का परहेजी भोजन बना रहे|
४७५-नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए:-
प्रात:तालू दो उगली से मले|भोजन के बाद हाथ रगर(रगड़)के दोनों जब गरम हो जाये तो आँखे सेक ले| 
४७६-भींगे १ मुट्ठी चने में बड़ी गुण है|
४७७-आँख के लिए कहते मिर्चा बिलकुल न खाओ|चना मिला गेहूं की रोटी खाओ|१ मुट्ठी चना खाकर १ पाव पानी पि लो|भोजन के बाद ३ मासे (माशे)शौफ चबाकर पानी पि लिया करो|रात को सोते समय,बड़ी सौफ का चूरन,६ मासे शंकर,१ तौला फांककर गाय का दूध ४० दिन|
४७८-सादा भोजन करो|खटाई मिर्ची,आग की लपट,धुआ,रोना क्रोध,फिकर,पखाना,पेसाब रोकना,रात जागने से लाभ न होगा|
४७९-देर से पचने वाली चीजें मत खाओ|शाम को तिन मासे त्रिफला ६ मासे शहद,१ तौला गाय का घी सेवन करें|सवेरे त्रिफला के पानी से आँख धोवे|तलवों को साफ रक्खे|
४८०-खान पान शुद्ध न होगा,दवा क्या काम करेगी?
४८१-पद:-जब तक मन स्थिर नहीं,तब तक कारज बंद|
                जब मन काबू हो गया,कारज होय तुरन्त||
४८२-देव अनुष्ठान(विशेष पूजा)करने के नियम:
-बाल न बनवाये|
-कपड़ा धोबी से न धुलावे|
-जमीन या तख़्त पर सोवे|पलंग पर न सोय|
-ब्रह्मचर्य रहे|
-स्थान अपना लिपा पोता हो|दूसरा न जावे|जप पथ एकांत में करे|
-नीच से न बोले,(जिसके कर्म ठीक नहीं वही नीच है)
-अपने हाथ का भोजन बनावे,जल लावे,बर्तन मलै|
-जीव धारी सवारी पर न चले|
-नशा न खाय,झूठ न बोले,मन रोके (काबू करे)|
-किसी के यहाँ मोधा (स्टूल)कुर्सी पर न बैठे|
-सतोगुणी देवता का प्रसाद बंटता हो तो ले लेवे|
-पांचो चोरो से बचे|
-लघु शंका(पेशाब)लगे जल लेकर जाय,हाथ पैर धो कुल्ला करे|
-दिन में न सोवे|
-१० बजे सोवे ३ बजे उठे|
-जूता खड़ाऊ न पहिने,जीव मरते हैं|
-एक बार शुद्ध सतोगुणी भोजन करे|
-एकांत में रहे|
-जप पाठ करते समय किसी से न बोले|
-गुरु चरणों पर विश्वास राखै तब फलीभूत हो|
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