Thursday 28 April 2011

प्रश्नोत्तर-

प्रश्न१,अर्थ संकट में पारिवारिक कलह(झगडा)कैसे मिटावै| 
उतर-घर में जितने लोग हों,जो जिस देवता का उपासक हो,वह उसी की आराधना ध्यान(जप,पाठ)दो घडी प्रात:करै,ईश्वर सर्व शक्तिमान हैं|वह सब कुछ देने की शक्ति रखते हैं|
प्रार्थना २,महाराज बहुत धन आ रहा है |लेकिन शान्ति  नहीं है|
उत्तर-विश्व में कहीं शान्ति नहीं है,घोर अशांति है|
प्रश्न ३-क्या भगवान नाराज हैं?तकलीफ बहुत है|
उत्तर-भगवान नाराज नहीं होते|कर्मानुसार सुख दुःख जिव पाते हैं|जो कहे भगवान नाराज हैं,वह अपनी मौत और भगवान को खुद भुला है|
प्रश्न ४.दिल साफ,भाव-विश्वास पक्का कैसे हो?
उत्तर-यह जब से भगवान ने दुनिया बनाई है,तब से जिव भगवान से विलग हो रहा है,मन को काबू नहीं किया|हर एक योनी में मन जिव के साथ रहता है|जब उससे जबरदस्ती लड़ो,तब मन हार जाय|
भगवान का जप-पाठ करो|जब पाप नाश हो जावेगा,तब मन लगने लगेगा और दर्शन होने लगेगा|नाम की धुनी खुल जावेगी|ली दशा,शून्य समाधि होने लगेगी|यह सब काम धीरे धीरे बढ़ते हैं|खराब काम जल्द होते हैं|बड़े-बड़े डाकू देखा जो तमाम खून किये,मारे गए,जेल गए,स्वभाव न छुटा|समय आ गया सब छुट गया|मस्त हो गए|
प्रश्न-५.पट खुलने की क्या परिभासा है?
उत्तर-सबसे निचा अपने को मान लो,बस दीनता आ जाएगी,शान्ति मिल जावेगी,मन तुम्हारा संगी  हो जावेगा|अभी वह चोरो का संगी है|जब परमारथ,इस्वर का भजन करने लगोगे साथ साथ परस्वारथ करोगे,तब मन तुम्हारे बस हो जावेगा,तुमको तर देगा,खुद त्र जावेगा|सारा खेल मन का है|
प्रश्न ६.सावधान रहने पर भी बार बार गलती होती है|मन में भगवान के लिए तडप,प्रेम नहीं,क्या करै?
उत्तर-अपनी सच्ची कमाई का अन्न खाओ,सब के सुख,दुःख में शरीक (शामिल)रहै|बेईमान का अन्न खाने से २१ दिन असर रहता है|सब से निचा अपने को मान ले|बेकसूर कोई गली दे,धक्का दे,रंज न हो|मान अभिमान से दूर रहे,अपमान लगेगा तो सारा सुकृत (सत्कर्म की कमाई,तप,धन)चोर चाट लेंगे,यह सब बातें सीखी जाती है|सादा भोजन करै,सादे कपडे पहिने|यह सब बातें अपने अन्दर रक्खे,तो पट खुल जाय-असली भजन की कुंजी है|
प्रश्न ७-भगवान के प्यारा कैसे बनू?
उत्तर-घुर बन जाओ-बिना खता कसूर कोई चार बात कहे,सहन कर लो,हाथ जोड़ दो|भक्त को भगवा कोढ़ी,अँधा,लूला लंगड़ा,दरिद्री जैसे चाहे रक्खे,भक्त प्रसन्न रहता है|स्मरण ध्यान न छूटे|
प्रश्न ८-विश्वास प्रेम कैसे हो?
उत्तर-भजन गुप्त रूप से करो|तुम जानो तुम्हारा इष्ट जाने|
प्रश्न ९-पूर्व जन्म के पाप और प्रतिबंध कैसे कटे?
उत्तर-पाप क्या करेंगे?भजन में जुट जाओ|
प्रश्न १०-ऐसी कुछ कतिप कीजिए ताकि कुछ विधि तो बने|अपना करने से कुछ जमा नहीं हो रहा है ऐसा अनुभव है|उलझन बढ़ जाती है|
उत्तर-पीछे पड़े रहो(भजन साधन करते रहो)इससे उलझन पीछे पड़ जावेगी ,तुम आगे बढ़ जावोगे|
प्रार्थना ११.विवेक बुद्धि हो,आत्मा शरीर से अलग रहे और जो प्रसन्नता मनुष्य को नए कपडे बदलने में होती है हमें शरीर छोड़ने में हो|
उत्तर-जब सबसे अपने को निचा मान ले,दीनता आ जाय,शांति मिल जावै|निर्भय और निरबैर हो जाय|मान बड़ाई में खुस न हो|उसका पर्दा द्वैत का उतर जाता है|सम दृष्टि हो जाती है|न जीने की ख़ुशी,न मरने का डर|उसे के यहाँ और वहां,जो भीतर है वही बाहर देख पड़ता है|
प्रश्न १२.महात्मन,अनेक कारणों से मन अशान्त रहता है,यह कब और कैसे शांत होगा?
उत्तर-किसी भी देवी देवता का जप पाठ मन लगाकर किये बिना शुभ काम नहीं होता|श्री कबीर दास जी ने कहा है की १ घडी हर की तो ५९ घडी घर की|लेकिन मन तो १ घडी भी नहीं लगता|
वह मौत और भगवान को भुला है|लोग रोज मरते और पैदा होते देखकर भी हम समय,स्वांसा और शरीर अपना मानते है,यही भूल है|उसके दिमाग में यह बात घुसी है की हम नहीं मरेंगे|जो सबका भला कहता है वही आदमी,आदमी है|जो केवल अपना भला चाहता है वह आदमी नहीं है|उसकी गति नहीं होती है|क्योकि उसमे दया धर्म नहीं है|
प्र्श्न१३-प्रभो,दया धर्म की क्या महिमा है?
उत्तर-परमारथ और परस्वारथ दो दल है|परमारथ अर्थात ईश्वर को प्राप्त करने हेतु पूजा पाठ,जप ध्यान करना|परस्वार्थ-दया धर्म करना|जो दोनों डण्डा पकड़े हैं उनका दर्जा बड़ा ऊँचा है|कोई भूखा प्यासा आ गया,तुम पूजा पाठ करते हो,दूसरा कोई वहां नहीं है,तो तुम फ़ौरन उठ कर उसे भोजन दे दो|अगर प्यासा है तो उसे पानी दे दो|फिर आकर अपना नेम करो|दया धर्म सब धर्मो से ऊँचा है|
कबीर जी ने कहा है:-
तेरे दया धर्म नहीं तन में,मुखड़ा क्या देखे दर्पण में|
दया धर्म को प्रकट करते हुवे अन्य भक्त ने लिखाया है:-
वजहन जग में आईके,करिये न तू मान |
दया धर्म नहीं छोडिये,जब तक घाट में प्राण||
प्र्श्न१४-प्रभु कल्याण मार्ग कैसे मिल सकता है जिसमे लोक परलोक बन सके?
उत्तर-कल्याण मार्ग में १ माला गायत्री,१० माला ओंकार मन्त्र जपे जाते हैं|फिर ध्यान किया जाता है|तो उसकी धुनी खुल जाती है जो सब लोको से जर्रा जर्रा से,रोम रोम से हो रही है|साधक को सुनाई देती है|तब ओंकार प्रकाशमय शामने छा जाता है|फिर विसाल ह्रदय की जरुरत है|माला की नहीं,न हाथों की,न आँखों की|
प्रश्न १५-भजन करते समय बड़ी अशांति रहती है,कल्याण मार्ग बताओ|
उत्तर-भजन में बाधा पड़ना स्वभाविक है|गाँधी जी को गोली लगी|शम्स तरवेज की खल खिची गयी|ईसा सूली पर चढ़े|जितना बाधाओं को  सहन करते जाओगे,कल्याण मार्ग पर बढ़ते जाओगे|मन काबू किये बिना कुछ नहीं हो सकता|
फिर खफीफ का पद सुनाया गया| 
पद:-सतगुरु से सुमिरन बिधि जानो नाम क जरी तार रहे|
        दिन बने तो तप धन पावै,वरना यह दुश्वार रहे||
        भीतर से दया नौकर पर रहे|
परस्वारथ बिन कह खफीफ,तन दोनों दिसि बेकार रहे||
प्रश्न१६-महाराज मनुष्य एक यंत्र है|उसको आप चलाने वाले है|
उत्तर-जिस रीती से ऋषि मुनि चले हैं,उसी रीती से चलना चाहिए|जितने संत भये है सबने अपने को निचा मान करके ऊँचा दर्जा पाया है|दीनता,शांति से इन्द्रिय दमन किया है|भजन का पुराना तरीका यही है|इसी तरह चलना चाहिए|
कबीर जी ने कहा है:-
मेरा मुझ में कुछ नहीं जो कुछ है सो तोर|
तेरा तुझ को सौपते,क्या लागत है मोर||
प्रश्न१७-गुरु कृपा से अन्तर के फाटक खुल जाते हैं पर साधक स्वयं मेहनत करै और प्राप्त करै|कुछ लोगो का मत है की मार्ग बता देने के बाद गुरु का कार्य समाप्त हो जाता है,आप बतावै क्या सत्य है?
उत्तर-गुरु वाक्य अनमोल रत्न हैं|उसे विश्वास करके पकड़ ले|अपना भाव विशाल होना चाहिए|बाबा रामसरन दास जी ने हमें लिखाया है:- 
सत गुरु वचन भजन से बढिके| 
सुर मुनि सब हमसे यह भाख्यो हम न कहैं कुछ गढ़िके|
ध्यान धुनी,प्रकाश,दशा,लय
                                          श्याम प्रिय मिलै कढ़ी के||
जियते ठौर ठिकाना बनाओ,होय न सुनी लिखी पढ़ी के|
राम सरन कहैं अंत त्यागी,तन चलो सिंहासन चढ़ी के||
प्रश्न१८-सपन की मीमांसा(व्याख्या)करिये|
उत्तर-खराब स्वप्न पेट की खराबी से होते हैं|भुत प्रेत बाधा से,भुत वायु बिगड़ जाने से,बहुत चिंता के कारन|अच्छे स्वप्न से अच्छी गति होती है|
नानक जी ने कहा है:-
                 जागृत स्वप्न सुषुप्ति तुरीया|
                  आतम भूति की यह पुरिया||
एक स्वप्न जागते में होता है|एक स्वंत सोते में होता है और एक ध्यान में|यह आत्मा का खेल है|
अन्धे शाह जी का पद:-
करमा,कुबिजा,गडिका सेवरी प्रेम प्रभु से किना|
अंत त्यागी तन निज पुर पहुंची सिंहासन आसीना||
सीधी सदी चारौ माई,तीर्थ व्रत नहीं कीन्हा|
अन्धे कहे प्रीति विश्वास से,हरी को बस करी लीन्हा|४|
शुभ कारज करी लेव,जियत में,कर्म की भूमि बनी यहीं|
चाली कहै पदारथ चारिउ,इसी रीती से मिलत सही||
सारा खेल मन का है|
प्रश्न१८-मन कैसे लगे?
उत्तर-१)मान अपमान न लगे|
          २)अच्छा अच्छा भोजन छोड़कर,रुखा भोजन करो|दोनों समय कुछ भूखे रहो|सबके दुःख सुख में शरीक रहो|बेईमान का अन्न न खाओ|बेखता कसूर कोई गाली दे मारे तुम रंज न करो चुप रहो|शुद्ध कमाई करो|भजन खुल जावेगा|
प्रश्न२०-भजन किस तरफ किस समय करैं?
उत्तर-३ बजे रात्रि से ११ बजे दिन तक पूरब मुंह,११ बजे से २ बजे तक उत्तर मुंह बाद में १० बजे रात्रि तक पश्चिम मुंह|और रेल में बैठे हो तो जिस तरफ रेल जाती हो उस तरफ मुख करके बैठकर जप करैं|
भगवान सर्वशक्तिमान हैं|वे सब कुछ कर सकते हैं|कर्मानुसार भगवान सबको देते हैं|अपनी विचार कुछ नहीं चलती|जै दिन के जहां का अन्न होता है भगवान रखते हैं|समय स्वांसा शरीर भगवान का है|जो अपना मानते है वह भगवान को भूले हैं|
प्रश्न२१-''(प्रसंग)पारिजात ''विधि भक्त पूछते है|
उत्तर-बहुत शुद्ध जिव होगा वही कर सकता है,सब नहीं कर सकते|व्यर्थ पूछते है|
प्रश्न२२-महापुरुष के संग से क्या लाभ?
उत्तर-प्रारब्ध (पूर्व जन्मो के कर्म फल)भोग भोगने की शक्ति प्राप्त हो सकती है|
प्रश्न२३-मन शुद्ध कैसे होता है?
उत्तर-मन शुद्ध जीभ को रोके होता है|जितना सदा हल्का भोजन होई,उतना ही मन हल्का रहेगा-भजन होगा|बिना इन्द्रिय दमन कुछ होगा नहीं|प्रेम भाव विशाल हो जाय,तब कोई बात नहीं|
प्रश्न२४-हम सब आपके है|आप की कृपा से जो होगा,सो होगा|
उत्तर-बिना पंखा के डुलाये हवा नहीं मिलती|जो कहा जाय उस पर चलने से काम होता है|कर्म भूमि है|सबको भोगना पड़ता है|देवी देवता आलस्य पर लात मारकर मन से जबरदस्ती लड कर अपना काम करके अजर अमर हो गए|यह बातें कायर की है की हमसे कुछ न होगा|मनुष्य का दर्जा देवी-देवता से ऊँचा है|जब मन लगाकर न किया जावेगा तब तिलक चन्दन माला कन्ठी भेष कुछ काम न देगा|फिर शरीर छूटने पर कौन सहायक होगा?मन के जरिये से जो होगा उसका फल जिव को भोगना पड़ेगा|राम जी ने एक बाण से बाली को मारा था|तब से २८ चौकड़ी (चारो युग की एक चौकड़ी)हो गयी है|वही बाली भील होकर द्वापर में १ बाण से कृष्ण भगवान को मारा|कहाँ तक लिखे|
प्रार्थना २५-आप धीरज दीजिये नहीं तो बुरा हाल होगा|
उत्तर-लगी जाव तब कृपा घुसरै|सब बात पर चल जाओ,मन उधर लगने लगे|हमारी आत्मा खुश होकर तुम्हारे अन्दर प्रवेश कर जाये|
प्रश्न२६-यह परमार्थ (भगवान की प्राप्ति)का विषय साधन साध्य है या कृपा साध्य?
उत्तर-विश्वास है तो कृपा साध्य ,न हो तो साधन से|

जिसका अपने गुरु पर अटल विश्वास है,उसका कोई काम रुक नहीं सकता,उसका सब काम आपै हो जाता है| 
 ||श्री महाराज जी की जै श्री मानव धर्म प्रसार की जै||  
                                                ||श्री महाराज जी का तुच्छ भक्त ||
                                                     संतोष कुमार वर्मा 
                                                  ग्राम-जखनियां 
                                                    पोस्ट-जखनियां 
                                                       जिला-गाजीपुर 
                                                   (उत्तर pradesh)
                            
                                                                9889150859,9807512140



Thursday 7 April 2011

प्रस्तावना-- "बैकुण्ठ धाम के अमृत फल "


"यह अत्यन्त हर्ष की बात है की,परम पूज्य गुरूदेव श्री राम मंगल दास जी 
महाराज जी की असीम कृपा से,उनके ही कर-कमलों द्वारा स्लेटों पर लिखे
 उपदेशों का यह संकलन प्रकाशित हो रहा है|
जैसा की सबको ज्ञात है की पूज्य महाराज जी निरन्तर ब्रह्मलीन अवस्था
 में अनहद नाद सुनते रहते थे|वे कहते थें की "अन्दर (अनहद नाद का)
हाहाकार मचा हुआ है"|इसी कारण वे अपने कानों से बाहर की आवाज नहीं 
सुन पाते थें|अतः भक्त अपने प्रश्न व प्रार्थनाएँ एक पत्थर  की स्लेट पर,जो
की श्री महाराज जी के तख़्त पर रक्खी रहती थी,उस पर लिख कर देते थें|
पूज्य श्री महाराज जी उस स्लेट को पढ़कर अपने श्री मुख से उत्तर देते थें व
 शंका समाधान करते थें|कभी कभी अपना उत्तर स्वयं स्लेट पर लिख कर 
देते थें|या कभी अपनी ही मौज में बिना किसी के प्रश्न पूछे स्वयं स्लेट पर 
अपने उपदेश लिख कर देते थें|फिर कहते थें,"पढो"|भक्त जन उस स्लेट को
  पढ़ लेते थें|स्लेट फिर मिटा दी जाती थी ताकि कोई दूसरा भक्त अपनी 
प्रार्थना निवेदन कर सके|भगवद -स्वरुप श्री महाराज जी के उपदेश बश 
भक्तो के ह्रदय में रह जाते थें|उनको कहीं एक जगह व्यवस्थित रूप से 
नक़ल करके एकत्रित नहीं किया जाता था|कुछ भक्त बस स्वयं के लिए 
लिखी स्लेटों को कागज पर उतार लिया करते थें|
पर भगवान की लीला विचित्र है|पूज्य श्री महाराज जी की प्रेरणा श्री दामोदर गुप्ता जी को हुई|उन्होंने श्री महाराज जी के श्री चरणों के निकट बैठकर उनकी करीब ३०० स्लेटों के उपदेशों को अक्षरशः संकलित किया|भाग्वत्प्रेरना से ही,उन्होंने इन उपदेशों को "गोकुल भवन (गुरूदेव के आश्रम )तथा बजरंग भवन (गुरु देव के निवास स्थान)रूपी बैकुण्ठ धाम के कल्पव्रिक्षों के बगीचों के भक्तिवर्धक पुष्पराज"माना तथा इन उपदेशो के संकलन का नामकरण "बैकुण्ठ धाम के अमृत फल "किया,था अपने पास परमश्र्धा से सुरक्षित रखा|
सबसे पहले मैश्री बलराम वर्मा जी को अत्यंत धन्यवाद् देता हूँ जिन्होंने श्री दामोदर जी द्वारा किये इस संकलन के बारे में बताया|मई श्री दामोदर जी का अति कृतज्ञ हूँ की उन्होंने इस अमूल्य धरोहर को जन कल्याण के लिए प्रकाशित करने की अनुमति दी तथा इस संकलन की मूल प्रति प्रदान की|परम पूज्य गुरुदेव श्री राम मंगल दास जी द्वारा लिखित दीव्य-ग्रंथो तथा उपदेशों के प्रकाशन की अनुमति व सतत सहयोग प्रदान करने के लिए श्रधेय श्री राम सेवक दास जी को मई हृदय से नमन करता हूँ|इस महँ कार्य में समस्त आश्रम वासियों की सद्भावनाओ के लिए उनको धन्यवाद देता हूँ|इन दीव्य ग्रंथो तथा वाणियों के वितरण के अथक प्रयासों के लिए श्री अवस्थी जी के मैबहुत कृतज्ञ हूँ|
यह सब प्रकाशन कार्य श्री गुरूदेव की ही असीम कृपा से संभव हो रहा है|वे ही सब साधन जुटाने वाले है,वे ही सब कराने वाले हैं|ये परम पूज्य गुरूदेव के उपदेश हैं,जिनके समक्ष सारे देवी देवता तथा धर्म के पैगम्बर,सिद्ध संत प्रकट होकर आध्यात्मिक पद लिखवाते थें|उनके ये उपदेश अत्यन्त सरल व हृदय ग्राही है|ये सब धर्मो के पालन करने वालो तथा हर गुरु परम्परा के मानने वाले भक्तो को प्रेरणा प्रदान करने वाले है|
ये उपदेश परं कल्याणकारी है,तथा इस जगत में अमृत के समान है|यह सत्य है,यह सत्य है,यह सत्य है|
दिनांक-९ मई२००५                                     श्री गुरूदेव के परम तुच्छ दास 
                                                                       राजीव लोचन                                              
                                                                  (राजीव कुमार वर्मा)
ब्लॉग लेखक  श्री महाराज जी का तुच्छ भक्त -(संतोष कुमार वर्मा)    


क्षमा याचना ----
इस ब्लॉग लेखन और प्रकाशन में पूरा प्रयास किया गया है कि मूल पुस्तक में जैसे परम पूज्य श्री परम हंस राम मंगल दासजी के उपदेश लिखे गए है उन्हें अक्षरशः प्रकाशित किया जाये| इन उपदेशों के सम्बन्ध में कुछ मूल शब्दों के अर्थ तथा कुछ अन्य शब्द प्रकाशक के द्वारा कोष्टक में लिख दियें गए है,जिनसे ये उपदेश सरलता से समझ में आ सके |
इस प्रकाशन कार्य में जो कोई त्रुटी हो गयी हो तो इसके लिए प्रकाशक हृदय से क्षमा प्रार्थी है|


श्री राम मंगल दास जी महाराज जी कि जय ,श्री गंगा राम दास महाराज जी कि जय|


''बैकुण्ठ धाम के अमृत फल ''

अनंत श्री परमहँस राम मंगल दास जी महाराज
                                के 
              परम कल्याणकारी 
                      वचनामृत


(कर कम्लांकित स्लेटो  कि प्रति लिपि )
१-सादे  कपडे पहनो|सच्चाई  से रहो |परिवार का पालन करो|किसी से बैर न करो|सबके सुख  दुःख  में शामिल रहो|बेईमान का अन्न मत खाओ ,इसका असर २१ दिन तक रहता है,मरने पर नरक या प्रेत होना पड़ता है|तुम तकलीफ सह लो दुसरों को आराम पहुँचाओ |भिखारी दरवाजे पर आवे उसे १ मुट्ठी भीख दो |खली न लौट जाय |जब तुम्को फुरसत हो तब आधा घंटा जिस देबी देवता से प्रेम हो,उसका जप करो \किसी कि जीविका जाती हो तो झूठ कह दो |वैसे झूठ न बोलो |सब कुछ प्राप्त हो जाय |बेखता बेकसूर कोई गाली दे,तुम्हे रंज न हो,उसके हाथ जड़ दो |यह भजन खुलने कि कुन्जी है |

२--छोटी छोटी चिड़ियाँ जो घर में आती है उनको यथा शक्ति (जितना सामर्थ्य हो)चावल छितरा दिया करो |और चींटी जहाँ तहां बिल में दिखें या मैदान में वहां कुछ गुड आंटा मिलाकर बिल के पास रख दिया करो ७व १०व २१ दिन तो पाप नस होते है,जीवो पर दया करने से भी ऊँची गति होती है-वे बैकुण्ठ को जाते है|यह भजन कि शाखा है |
३--भजन कि दीनता शांति कि बड़ी जरुरत है |यह दोनों माता हैं -इनके गोद में रहने से काम बनता है |तब इनका परिवार अपना संगी हो जाता है |क्षमा,सरधा,संतोष,धर्म ,दया प्रेम भाव विश्वास ,सत्य ,शील,यह परिवार इनका है |तब जीव भक्त होकर मुक्त हो जाता है |
४--अपने भाव से सब देवी देवता,ऋषि -मुनि,सिद्ध संत कोटिन (करोडो)युग में मिलते है |स्वामी जी कि जीवनी में भाव ही प्रधान कहा गया है |
५--मुसलमानों ने भी भाव पर कहा है,:
हर जगह मौजूद है,पर वह नजर आते नहीं |
मन के साधन के बिना ,उनको कोई पते नहीं |
                         //सफाई शाह जी //
भाव सबमे मुख्य है ,जो भाव को गहि ले लता |
भाव से सुमिरन करे,हरी गोंद में नित खेलता || 
भाव से अनहद कि धुनी हो,भाव अमृत देवता |
कहता सफाई शाह मानुस भाव बिन दुःख झेलता |
६-- हम हमर नात भाई ठीक रहें बस ,उनके (ऐसेभाव वालो के )लिए भगवान नहीं है |
७--इस्ट भाव से रीझते (प्रसनन होते)हैं |
८--जैसा जिसका भाव ठीक होता है उसको वैसा फल होता है |कोई धन,कोई यस,कोई पुत्र,कोई मोक्ष चाहता है|भगवान के पास बहुत घुन घुना(झुनझुना)है,वही देतें हैं|जैसे माता बच्चे को झुनझुना देती है,वह उसे बजता है,खेलता है,माता घर का काम करती है |बच्चा मचल जाता है,घुनघुना फेंक देता है तो माता गोंद में लेकर काम करती है |सतोगुड़ी भोजन अपनी सच्ची  कमाई का अन्न हो तो मान सतोगुड़ी हो जाता है|चोर उसे तंग नहीं करतें|
मन इस शरीर को चलाने वाला ड्राइवर है |अच्छी जगह ले जय तो अच्छी गति हो,खराब जगह ले जाय तो ख़राब गति हो |सारा खेल मन का है |
९--खली भजन से कुछ न होगा,दो दल है-परमार्थ -परस्वार्थ|
परमार्थ-भजन करना| परस्वार्थ-सबकी सेवा करना|
१०--पट खुलना(आँखी-कान खुलना):
जब आँखी कान खुल जाय तो तमाम (सारे)देवी देवता जो यहाँ घूमते हैं सबको देखने लगो |जब कान खुल जाय तब रोम रोम से,जर्रा जर्रा से,हड्डी से,सब लोको से नाम (ररंकार )का हाहाकार मच जाता है |
११--जप,पाठ,पूजन,कीर्तन,कथा कहने सुनने से,सेवा धर्म से,परमार्थ से (तथा)देवगान से पट खुल जाते हैं |
१२--सब देवी-देवता भगवान ही बने हैं |दूसरा कोई नहीं है |सब परिवार लड़के लड़की उन्ही की है |(उन्हें )खाने पिने की तकलीफ न हो |तुम तकलीफ सह लो,उनको कष्ट न हो |पट खुल जाय|चिंता न करो |
१३--भगवान पर अटल विश्वास करो |
१४--भगवान भरोसे रहो,सब काम धीरे-धीरे ठीक हो जावेगा |सरलता की जरुरत है |छल अहंकार वहां पहुँचने न देंगे |
१५--दिन बन जाओ तो भगवान दयालू हैं ही |
१६--यहाँ की इज्जत  को लात मरो तब वहां इज्जत मिले |
१७--(लोग) कहते है भगवान की कृपा हो तब होगा|चलनी में दूध दूहे कर्म का दोष क्यों देवे ?जितने भक्त हूवे सबने कर्म किया |२ बजे उठ कर भजन किया |२ बजे से ब्रहम मुहूर्त लगता है |
१८--यदि कहना मान लोगे तो (भगवन के)प्रिय बन जाओगे |
१९--पढना लिखना व्यर्थ यदि अमल न हुआ |
२०--जिससे प्रेम हो उससे सुरती लगी रहे |
२१--एक बार सच्चे हृदय से रो दो |
२२--अभी जप ही नहीं होता तो ध्यान कैसे होगा?१ माला ब्रह्म गायत्री १० माला राम जी के,५ माला महारानी जी के जप पर आ जाओ प्रातःविशेषलाभ प्रद है |
२३--सेवा धर्म से सब काम बन जाता है |
२४--बजरंग बाण के ११ पाठ नित्य करे मान लगाकर,सब कम बन जाय|बिना धुआं कंडा की आग पर गुगुल की धुप देवें |राख कोरी हांड़ी में रखता रहे (फिर)नदी (या)गंगा में डाल दें |
२५--जितना होना होता है उतना ही होता है |
२६--जब कुछ न चाहोगे तो वे सब कुछ देंगें |
२७--चिंता होने से हिरा की भष्म (श्रेष्ठतम आयुर्वेदिक दावा)खाने से भी फायदा न होगा |
२८--सबका समय बंधा है |
२९--मंदिर में पूजन कर आओ |भावना प्रधान है, ढोंग न करो |
३०--स्नान,दर्शन शुभ कर्म घर जाने को सब पूछते हैं |(आज्ञा मांगते है)|खराब काम के लिए नहीं पूछते |
३१--साल में एक बार (आश्रम) आना ठीक,ज्यादा नहीं|खर्चा बहुत होता है |कहीं भी रहें सुरती लगी रहे |
३२--(हमें)पत्र में भजन (के)बारे में न लिखो,हमसे मिलने पर कहो |
३३--कोई का पत्र कोई(दूसरा)न पढ़े -महापाप है,कोई लाये तब पढ़ दे |
३४--साधक तारीफ न चाहे |भगवान जाने तुम जानो तब काम बनेगा |
३५--मन लग जाय,काम बन जाये |
३६--यज्ञ हो (और)एक भूखा चला जाय सब व्यर्थ |
३७--चार अक्षर का शिव जी का मंत्र,धन,पुत्र,यश देने वाला है |बिना पढ़े (अपढ़ लोगो के)भी तीसो हजार के मकान बन गए |दुकाने खुल गयी,मन लगाने की बात है |
३८--थाली में बढियां भोजन हो,(उसे छोड़)चना खाले,तब मन काबू हो जाय |
३९--बनुआ(दिखावटी)भक्त मत बनो,तुम जानो भगवान जाने |
४०--संस्कारी जीव ही भजन कर सकता है |
४१--भक्त (साधक)दया की मूरत है |
४२--बिना इन्द्रिय दमन मन न लगे |
४३--जिसका(भगवान से)अगाध (अनंत)प्रेम हो गया वह चाहे जो खाय |
४४--प्रेम की जरुरत है,पढने की जरुरत नहीं |
४५--राम,कृषण,कलि दुर्गा,शिव सब एक ही रूप है |
४६--सदा भोजन -सच्ची कमाई |
४७--भूख भवानी भोजन पावे |
        तब भजन में मन लगावे |
४८--कुछ गरीब है भक्त है |महाराज (दादागुरु)जब जाते तो २ मिल पहुँचाने जाते,रोते|कहते तुम जावो अयोध्या |हम तो प्रत्यक्ष चरणोदक लेते है |
४९--जितना भोजन काम होगा,उतना शरीर हल्का रहेगा|काम हो जायगा |
५०--माला का दाना छोटा हो,ज्यादा लम्बा न हो |जप माली (माला रखने के वस्त्र)में ही जपना चाहिए |अंगुली निकली रहे |गुप्त रूप से जपना चाहिए |और ज्यादा विधि विधान नहीं है|बैजंती काले दाने का माला भी श्रेष्ठ है |
५१--थाली में स्वादिष्ट भोजन रखा हो वह न खाएं और (कुछ सादा)खालें |
५२--भजन सबसे नहीं हो सकता |कहीं लाखों करोड़ों में एक कर सकता है |
५३--इसको(मन को)जितना ही उत्तम पदार्थ भोजन में दोगे,बढ़िया वस्त्र और आराम दोगे,उतना ही खायेगा और गुर्रायेगा|अर्थात परेशान करेगा और दुःख भुगायेगा|
५४--श्रधा विश्वास से पढने लिखने सुनने से मति शुद्ध होकर पिछले पाप कटते है भगवान में प्रेम बढ़ता है 
५५--गुरु कृपा जेहि पर नर किन्ही ,तिन्ह यह जुगती पिछानी |
       नानक लीं भयो गोबिन्द संग,ज्यो पानी में पानी ||
५६--नेक कमाई का सादा सूक्ष्म भोजन करे |
५७--तुम जानो,भगवान जाने,तब भजन करके पार हो सकते हो|सबसे निचा अपने को मानो,मान बडाई में न पडो,तब आँखी कान खुल जाये|
५८--जब मौत और भगवान का डर होता है,तब भजन में मन लगता है |(जो)समय स्वास शारीर अपना मानते है,वह भगवान को कुछ नहीं मानते सकते|
५९--एक स्त्री को समझाना:-
बिना क्रोध जीते भगवान से मेल नहीं हो सकता,जब बेखता बेकसूर कोई तुम्हें गाली दे तुम्हें रंज न हो,तो भगवान प्रकट होकर सर पर हाथ फेर दें |तुम जब घर की बातें न सह सकोगी तो बाहर की कैसे सह सकोगी |
६०--कबीर जी ने कहा है:-
हरी से लगे रहो मेरे भाई,बिगड़ी बनत-बनत बन जाई |
६१--भगवान भक्तन पर प्रेम और पापी पर दया न करे तो इनका उद्धार ही न हो |
६२--मन शरीर को चलाने वाला ड्राइवर है|अच्छी जगह ले जाय तो अच्छी गति हो,खराब जगह ले जाय तो खराब गति हो |
६३--सारा खेल मन का है|(संसार से)बंध मोक्ष का कारन मन है इसकी बदमासी इससे जबरदस्ती लड़ कर जीतो,नहीं तो बारबार हर योनी में पैदा होना मरना न छूटेगा |इसके संगी भूख प्यास जुबान इच्छा है,यह बड़े नालायक चटोरे  हैं |यह अच्छी चीजें बहुत खातें हैं |यह अच्छी वस्तु के लिए पेट में जगह चुराएँ हैं,सूखी के लिए पेट में जगह नहीं है |यह इन सबकी बेईमानी सुनकर समझकर सतर्क रहो |
६४--मीठा खाने से मन लबरा (लालची)हो जाता है |यह सब खाने से भजन न होगा |
६५--जो संसारी बातों में पड़ा है,वह कुछ नहीं कर सकता |बिना मान अपमान जलाये,भगवान् तथा अन्य देवी देवता मदद नहीं करते |जो केवल ईस्वर के सहारे हैं वही पर होता है दूनियाँ के सहारे रहने वाला दूनियाँ में बारबार पैदा होता व मरता है |
६६--जिसे भगवान की तरफ जाना है,वह सब बातो को छोड़ कर प्राण का लोभ त्याग दे,वही भगवान का प्यारा दुलारा है,न किसी से बैर न किसी से मेल |
६७--अपना भाव ठीक है तो सब देवी देवता पास ही हैं |
६८--दान लड़की की शादी (शादी में)गरीबो की मदद में देना चाहिए |भगवान जाने,जो दे वह जाने,तब फल होता है|गुप्त दान,पुण्य भगवान के यहाँ लिख जाता है|कहने से पुण्य छीन  हो जाता है|कितने भूखे मरते है,झोपडी टूटी है,कपडे फटें हैं,पेट कभी भरता नहीं है,-ऐसे (लोगो को)को देना चाहिए |
पद: पुण्य करौ सो ना कहौ,पाप करो परकास |
       कहिते ते दोउ घटत है,बरनत तुलसी दास ||
६९--दाहिने हाथ से जो दिया जाय उसे बायाँ हाथ भी न जाने |
७०--भजन की हजारों शाखाएँ हैं,केवल माला से कुछ नहीं होता|इमान ठीक हो,जीवो पर दया,तब कुछ होता है |पर उपकार से भी पट खुल जाते हैं |बेखता बेकसूर कोई गाली दे तुम्हें रंज न हो |तारीफ करे तुम खुश न हो |माया दोनों तरफ से लूट लेती है |
७१--कोई चाहे जो कुछ भी कहे तुम्हें रंज न हो,बस भजन हो गया |
७२--किसी को कटु वचन न कहो|
७३--संसारी बातो में न जाओ |
७४--परोपकार से जीव चौथे बैकुण्ठ को जाता है |जिसमे परोपकार और किसी देवी देवता से प्रेम नहीं है उसकी गति नहीं होती,यह आँखों देखी बात है |
७५--व्यास जी ने भागवत में परोपकार का बड़ा महत्व कहा है|ऐशा दूसरा धर्म नहीं है|
७६--भजन करना तमाशा नहीं है,जियते (जीते जी)मर जाना पड़ता है,तब जियते  तर जाता है|तब वह जियते सरन(भगवत शरण)हो जाता है|
७७-सत्संग:-जिसका मन काबू हो,ध्यान में बैठे,भगवान प्रगट हो,सब ऋषि मुनी देवता,भगवान का जस तुमको सुनावै उसे सत्संग कहतें है|महासत्संग -तुमसे भगवान से बातचीत हो|
७८--यह दुनियाँ को खुश करने के लिए पढ़ी सुनी लिखकर कंठ (रट)कर के सुनाते हैं|अपना मन काबू किये बिना आंखी-कान नहीं खुलते-सब (संसार के बंधन में)पकडे जावेंगे |
७९--जो पढ़े लिखे नहीं है-भगवान में श्रधा विश्वास है,गीता-रामायण धरें हैं,धुप आरती लगते परिक्रमा दंडवत करते हैं |सब देवी-देवता भगवान के साथ रामायण गीता से निकल-निकलकर(उन भक्तों से)बात करतें हैं |फिर उसी में समां जाते हैं |बहुत देखा"लाम-लाम"करते हैं,छिता लाम-छितालाम करते हैं|उनको दर्शन होते हैं|यह सब आखिन देख चुके हैं|
८०--जो विद्वान हैं,शुद्ध शब्द उच्चारण करते हैं,भगवान में शुद्ध भाव नहीं है|इशी सा द्वैत (अपनापराया का भाव)उनको छोड़ता नहीं हैं|
८१--द्वैत छूटे बिना कुछ नहीं होगा|हम,हमार,परिवार,नात,भाई,का काम बने,वे नीक(अच्छे )रहें और (दूसरों को)चाहे जो हो-यही द्वैत है|
८२--जब हम घूमते थे एक गावं में १०-१५ मूर्ति (आदमी )थे|मंगलवार को एक चौकी पर कपडा बिछाकर (तुलसीदास जी लिखित )विनय पत्रिका धरे कीर्तन करते थे|
                            ||कीर्तन||
जय सिया राघवम=जय प्रिया माधवम||
जय रमा केशवम=जय शिवा संकरम||
हम बैठ गए|जब शाम को कीर्तन समाप्त हो गया तो लोगो ने कहा-महाराज-बहुत आनन्द आता है|
८३--दिन दुखियों पर्दय करने से भगवान खुश होते हैं|भागवत में व्यास भगवान ने कहा है-परुपकर से बढ़कर कोई भजन नहीं है|जिसके साथ भलाई करोगे,उसकी आत्मा खुश होगी,इसी तरह तपधन इकट्ठा होते-होते सब कुछ प्राप्त हो जावेगा|
८४--पहले(पुराने समय में)ऋषि गण सेवा धर्म सिखाते थे,उसी से पट खुल जाते थे|फिर मंत्र बताते थे|शिष्य के पूछने पर इशारा कर देते थे,उसे पूरा पता चल जाता था|तब पढ़ाते थे|तब के रूप में प्रकट हो जाते थे|सब लीला दर्शने लगती थी|
८५--पहले पढने से सब दिमाग में भर जाता है,तो द्वैत नहीं छूटता|विद्या  मद (विद्या का अहंकार)दीनता नहीं आने देती,उसमे अपना जीत चाहता है|अविद्या घुसी है|
८६--हमें किसी संत ने लिखाया है:
दोहा:-धन मद,बल मद,रूप मद,विद्या मद ये चारी|
          भाव सागर की वारी में,पकड़ी देत है डारी||
                           (वारी=जल)
८७--दिन बनो|कोई थूके मुते,रंज न हो-तब भजन हो सकता है|यह भजन की कुंजी है|तभी(दिन नहीं बनने पर )कुछ होता नहीं|कोटिन (करोडो)में कोई(एक)चल पता है|
८८--सब कुछ खाने से भजन न हो सकेगा|
८९--तप धन गुप्त रखें ,बताया तो नष्ट हो जायेगा|
९०-जिसकी बुद्धि बहुत चंचल है,जो स्वभाव पैदायसी (जन्म से)पड़ा है यह छूटना मुश्किल है|चली के चरित्र में कितना लिख दिया गया है|भगवान का डर नहीं है|वहां सब हिसाब लिखा जाता है|मौत सर पर खड़ी है|हर समय घात लगा रही है|समय पर ले जावेगी,छोड़ेगी नहीं|तब होसियारी नहीं नहीं चलेगी|
९१--हमसे कितना उपदेश पद लिखा पढ़ा है|हम क्या करै,सरबत नहीं है जो घोर कर पिला दें|शिद्धो के वाक्य लिखना औरो को सुनाना,गोस्वामी जी ने वंचक भक्त कहा है|गौरांग जी कृष्ण भगवान थे-वे कह गए है,नामापराध वाले की गति नहीं होती,-जो पढता,सुनता,लिखता है,उस पर चलता नहीं,दुनियाँ को रिझाता है|दुनियाँअंधी  है|
९२--जो भगवान ने चित्रगुप्त से लिखाया होगा,वही होगा|जिसका ईश्वर पर भरोसा है,उसका भगवान काम खुद करते है,मनुष्य क्या कर सकता है?ईश्वर जो चाहता है वही उसी की इच्छा से होता है|भक्त अपना मन उधर लगाये रहता है,वही सच्चा भजन है|
९३--महाराज(दादा गुरु)कह गएँ हैं-कर्म से भ्रष्ट,कर्म से श्रेष्ठ |कर्म किये बिना कुछ ना होई|जिसका अगाध प्रेम हो जाय,उसके लिए कोई नियम नहीं है|जियतै मर जाना पड़ता है|
९४--एक साधू ३सौ बरस के,सरयू किनारे घुमा करते है,गुप्तार घाट से राम घाट तक|उनके हाथ पैर में अँगुली नहीं है,एक जमीदार को किसी साधू ने बता दिया था|वह (जमीदार)सच्चा प्रेमी था|साधू सरयू किनारे बैठे पैर धोते थे|वह चरण पकड़ लिया तो कहा-राम-राम तुमने कोढ़ी को छू लिया|ठाकुर ने कहा मुझे एक साधू ने बताया था,हम दर्शन को आयें हैं|तो कहा,क्या चाहते हो?तो कहा-जब हमारी इच्छा हो तब दर्शन दे देना|तो कहा,अब तुम जाव,(जाओ)किसी से न कहना|हमसे यही कहा-हमारे पास किसी को न लाना|हम सबको नहीं मिलते है,जब भगवान का हुकुम होता है तब मिलते है|खूब मोटे ताजे हैं|पुराने कपडा कमर में लपेटे हैं|
९५--केवट ने कछुवा के पीठ में पानी लाकर पहले राम जी की चरणों को धो कर पि लिया|फिर सीता जीके चरण धोये फिर लक्ष्मण  जी के चरण धोये|
९६--जब तक दशा मजबूत नहीं होती,तब तक ऐसा होता है|ज्यो-ज्यो भाव बढ़ता है,ले दसा सुधरती है|तब समझ में आ जाता है|यह दसा पहली ऐसे साधको को होती है|
९७--हम पहले फल छिल कर खाकर देख लेते थे,अगर ख़राब हो तो भगवान नहीं पाते थे,छिलका तो आदमी को भी नहीं पसंद है|
९८--हाथ पैर धोकर पुर्वामुख मौन होकर भगवान का आवाहन भोग लगाकर भगवान का प्रसाद पावै|
९९--तुम घर से बाहर जाकर मन ठीक नहीं कर सकते|यह लोग और सब दुखी होंगे|वह दुःख का तार तुम्हें गिरा देगा|अपने घर में बैठकर मन से जबरदस्ती लड़कर उसे काबू करो नहीं तो कुछ न होगा|मन से हार जाने से घोर नरक होता है|
१००-यहाँ तो ऐसे जीव है-माँ बाप को छोड़ कर आये |उन्हें मरने पर नरक होगा|
१०१-मन साधू हो जाय-साधू भये (साधू का रूप रखने से)क्या होगा?
१०२-भगवान के यहाँ खता में नाम लिखा कर फिर गैर हाजिर करना,भजन में आलस्य प्रमाद करना यह भक्ति नहीं है|भजन नियमित होना चाहिए |
१०३-जो इम्तहान देता है उसका मन यदि खुश रहता है,वह पास हो जाता है|और यदि मन उदास रहता है,तो वह फेल हो जाता है|सारा खेल मन का है|
१०४-जितने ऋषि मुनि देवी देवता है,सब भगवान के हुकूम से काम करते है|बिना हुकूम के जबान,हाथ पाव,आँखे,सारा शरीर चल नहीं सकताहै|जो कह देता है हमने किया,वह अहंकारी रावण है,अगर एक रोवा भर अहंकार है,और छल है-तो कपट मारीच है|करता धरता भगवान है|अहंकारी और कपटी भक्त नहीं हो सकता|(वह)मौत और भगवान को भुला है|
१०५-एक माई का पद:-
धन,पुत्र,जस से नारी नर की खोपड़ी भरती नहीं|
वासना आगे चले पीछे कदम धरती नहीं||
१०६-बिना मन काबू भये भगवान की भक्ति हो सकती नहीं|
१०७-एक घडी मन लग जाय तो ५९ घडी की भगवान माफ़ी देतें हैं|
१०८-दर्शन करना,घर जाना,यह नहीं पूछा जाता(इनके लिए आज्ञा नहीं ली जाती)|लड़ाई,झगड़ा ,मार-काट पूछा जाता है,(तो)उसे रोक दिया जाता है|रुपया खर्च होता|हाथ पाव टूटता है|जहां क्रोध कसाई आया,अपना काम करके चला गया|अब तुम अस्पताल जाओ मरहम पट्टी बंधाओ|
१०९-जैसा भोजन वैसा सुरस,वैसा खून,वैसा धातु बनता है|मन को कोई रोक नहीं पते|उसके संगी भूख पियास,जुबान,इच्छा-यह बड़े बदमास है,चालाक है|ये अच्छी चीजें खूब खाते हैं|इसी से रोग ठीक नहीं होतें|
११०-४० दिन का अनुष्ठान जिस देवी देवता से प्रेम हो,उसमे तन-मन लगा दो,बस काम हो जाय|लिखने की जरुरत नहीं है|अपने भगवान पर विश्वाश रखो तब भगवान और ऋषि मुनि देवी देवता खुश होते हैं|दुनियाँ न जाने|लिखना तो ऊपरी काम है|
१११-घनश्याम सरन साधू लक्ष्मन किला पर रहे|जब बीमार पड़े तो एक १८ साल का लड़का(आमिर आदमी का)भक्त था आया,सेवा करने लगा|अपने को मिटा दिया|काफी दिन रहा जब खुद सख्त बीमार पद गया तो बड़े भाई को तर दिया|भाई आया|उसने कहा अब तुम महाराज जी की सेवा करना,हम जाते है|बस शरीर छोड़ दिया|विमान पर बैठ कर चला गया|घनश्याम सरन महाराज जी(दादा गुरु)को बहुत मानते थे|महाराज जी ने हमसे ये हल बताया|
११२-शिष्य होय तो ठीक हो,नहीं तो बेकार|
         वासे तो चैला भला,जसे हो भण्डार||
                 (चैला-भोजन)
११३-जिससे कोई सम्बन्ध न हो,वह बीमार हो उसकी सेवा करना बड़े धर्म का काम है|महाराज जी ने बताया था |हम पुलिस में जाकर कह देते थे|उसे लाते सेवा करते,ठीक हो जाता तो उसे घर भेज देते,मरजाता तो सरयू में पधरा (प्रवाह कर)देते|
११४-बाबा टिका दास वैश्य के बालक थे|१६ की उम्र में एक जंगल में घुस गए गोमती किनारे|१२ वर्ष किसी से न मिले|एक साफी दो लंगोटी थी|वह रोज नहाते,जंगल की पत्ती जो कडू न थी वो खाते|विचित्र जीवनी है|३० की उम्र में हनुमान जी को नमक छोड़ (मिला)कर रोटी खिलाया था|हनुमान जी ने पीठ ठोक दिया,खा-"तुमसे भजन ही करावेंगे"|
११५-पढ़ के करो न,तो बड़ा भरी पाप है|(जानते हुए की यह गलत काम है फिर भी उसे करना,बड़ा भरी पाप है)|
११६-यह सब भीख उसी को भगवान देते है,जो दिन भिखारी होता है|उसी की झोली भगवान भर देते है|अपने भाव से गुरू,सब देवी देवता ख़ुश रहते है,(और)मिलते है|
११७-बिना भाव के मन गन्दा रहता है,कुछ नहीं हो सकता-क्या खेल है?अभी २५० औरत मर्द अरब में भजन करते है|बैठे भगवान की लीला देखते रहते है|(उन पर)कोई थूकता है,कोई मूतता है,कोई ऊपर हगता है,वे चुप रहते है|जब उठते है तब धोकर साफ करते है|
११८-कितनो कसनी(कष्ट)परै,डिगे नहीं|वही भगवान का भक्त हो सकता है|मंशुर,ईसा शम्श,तरबेज,अहमद,तेगबहादुर गाँधी-यह भक्त हुए है,और आगे होंगे|
११९-सब कुछ खाने से भजन न होगा|
१२०-भक्त अपना भाव प्रकट नहीं  करते,सब चला जाता जाता है|तमाम लिख कर भेजते हैं,सब पढ़ने वाले तारीफ करते हैं,वे खुश होते हैं|चोर,माया सब लुट लेते हैं,कोई कुछ जमा नहीं कर पाते-कैसे पार होंगे?क्या गुरु हाथ पकड़ के ले जावेंगे?जो वचन ऋषिओं के हैं उन पार चलते नहीं|पढ़ते,सुनते,लिखते,दूसरों को समझातें हैं|तब पकड़ी ले जावेंगे|बार-बार हमें कहते हैं,करते अपने मन का हैं,हमें दुःख होता है|
१२१-चारों धाम घूमो मन शांत न होगा|एक साधू ४५ वर्ष घूमे,परन्तु बड़े महाराज के पास आये की महाराज शांति न हुई,तब महाराज ने मंत्र दिया|बिना दीनता शांति लायेमन को शांति नहीं आती|बिना खता कसूर कोई (तुम प़र)मूते,थूके,क्रोध न करो,तब शांति मिलेगी|
१२२-चली मेहतर राम-राम कहता था,सब कुछ प्राप्त हो गया|तुम भी मन लगाकर करो,कोई न जाने|तुम जानो भगवान जाने|
१२३-एक अँधा था,और हाथ पैर से लुंज भी था|वह बोला हे,ईश्वर तिने बहुतो  से मुझे अच्छा बनाया|एक ने पूछा-अरे तू अँधा भी है,और हाथ पैर से लुंज भी है,तू कैसे कहता,की बहुतो से अच्छा हूँ |बोला-ईश्वर ने मुझे ऐसा दिल दिया है,की जिसमे मै उसे याद करता हूँ |यह दिल उसने बहुतो को नहीं दिया|
१२४-हमारे यहाँ अवध में एक मुशलमान लियाकत अली ड्राइंग मास्टर रहते थे|दुर्गा जी के भक्त थे|उनका लड़का गोंडा में रेलवे में नौकर था|उसने खाने पिने का इंतजाम किये था|उनको सब देवी देवता के दर्शन होते थे|रिटायर होकर भदोही गए|सब हिन्दू उनके रहने खाने,पिने का इंतजाम किये थे|उनको दुर्गा जी के जरिये सब देवी देवता के दर्शन होते थे,और नाना प्रकार के लीला देखते थे|हमारे बहुत भक्त उनके दर्शन कर आये|कहते थे-हमें भगवती के बदौलत जो सुख होता है,हमारा मन उसी में डूबा रहता है|बोलने की इच्छा नहीं होती|९० में शरीर छूता|
१२५-आप किसी देवी देवता का आधा घंटा जप या पाठ मन लगाकर करे,तो सब कम ठीक हो जाय|यह दुःख सुख सबको भोगना पड़ता है|राम जी ने त्रेता युग में बलि को एक बाण से मारा|फिर वह द्वापर में भील भया|कृषण भगवान को एक बाण से मारा जब करीब आया तो भगवान ने कहा-यह बदला है,हमने तुमको एक बाण से मारा था,बस शरीर छोड़ दिया|भीष्म जी ने १०१ जन्म में पहले एक सांप को लाठी से मारा|वह अधमरा हो गया|उसे काँटों पर फेंक दिया|वह ५२ दिनों तक फटक-फटक कर मरा|वही भीष्म जी को रन भूमि में ५२ दिनों की सजा मिली,बानों से बेधे पड़े रहें तब शरीर छूटा|रजा चित्र केतु के भंडारा में १ कंडा में चार सौ चिंटी के अंडा जले|वे सब रानी हुई |राजा को ब्याही गयी|राजा बीमार हुवें|सब मिलकर राजा को जहर देकर मारा|यह कर्म भूमि है|सब को भोगना पड़ता है|
१२६-पढने सुनने से कुछ नहीं होता जब तक कर्म न किया जाय|
१२७-जो दिल का बिलकुल साफ हो जाता है,उसे सब मालूम हो जाता है|हमको भगवती का हुकुम बताने का नहीं है|हम उनको सर धड अर्पण कर दिया है|८ साल हो गए हैं|तुम अपने ठीक भाव और विश्वास को पक्का करो,तो सब कुछ जान जाओगे |
१२८-जिसका अटल विस्वास होता है,उसका कोई काम रुकता नहीं|
१२९-भजन की हजारों शाखाएं हैं,केवल भजन से कुछ नहीं होता |ईमान ठीक हो,जीवो पर दया हो,तब कुछ होता है|
१३०-भजन से लाभ होगा,जब शहनशक्ति होगी|(कोई)बुरा कहे भला कहे,(तुम)रंज न हो,न क्रोध हो|
१३१-सब काम का समय भगवान बांधे हैं|सब जिव हाय-हाय करते हैं|ईश्वर पर विश्वास नहीं रखते|समै(समय)स्वांसा,शरीर भगवान का है|सब अपना माने हैं,मौत और भगवान को भूले है|यह माया का खेल बड़ा कठिन है|
१३२-कैसे मरना,पैदा होना छूटे?आंखी कान खुल जाय,उसे ज्ञान हो जाय,फिर यह जनम,मरण छुट जाय|अंधे मिया ने रामायण गीता, भागवत,बाल्मीकि,गायत्री सब पर लिखाया है|
१३३-यह सब बातें छोड़ कर अपने को सबसे निचा मान लो,बस आंखी कान खुल जाय|
१३४-गति (कल्याण)तो भाव से होती है|
१३५-हम तो चंद रोज के रहने वाले रह गएँ|अब सच्चा भाव कब आवेगा?नदी के किनारे,कबर के अन्दर,टिकती के ऊपर हैं|
१३६-पका आम जहां पेड़ से गिरा,तो आदमी या पशु जिसे मिला,खा लेता है,वही हाल है|बड़े भाग्य से नर शरीर मिलता है|अगर परस्वार्थ,परमार्थ कुछ न हुआ तो चौरासी के चक्कर से कभी न छुटेगा |जिव मौत और भगवान को भुला है|देखता है(लोग)रोज पैदा होते मरते हैं,गड़े जाते हैं,फुकें जाते हैं,जल में प्रवाह किये जाते हैं|वह समझता नहीं है|हम नहीं मरेंगे|और(कहता है)अरे उठो भाई ले चलो,यह तो मृत्यु लोक है|मरना,पैदा होना,लगा रहता है|जहां मरघट  से लौटे-ठान अपने-अपने काम में लग गए|थोड़ी देर झूठा ज्ञान कहकर फिर अज्ञान के घोड़े पर स्वर हो गए|कहाँ तक लिखे,कौन सुन कर राह पर चलेगा?
१३७-भगवान को ढोंग पसंद नहीं,तुम जानों इष्ट जाने,तभी सफलीभूत होगे |
१३८-बहुत पढना ठीक नहीं बुद्धि पितर(पीतल)हो जाती है|
१३९-चिंता छांडी(भगवान को)पकड़ लो|काम बन गया|
१४०-हमने घूम कर देखा|१८ की उम्र में ४ बरस घूमे है|तुम सब मौत,भगवान को भूले हो|समझते हो समय,स्वांस,शरीर हमारा है|परिवार,धन,मकान,खेती हमारी है|खूब-खाते पिटे हो|कोई तारीफ करे तो मस्त हो जाते हो|बुराई करे तो नाखुश होते हो|कसूर तुम्हारा है|मरते समय भगवान का नाम कान में पड़ जाता है,तो महापापी भी तर जाता है|यह कर्म भूमि है,अपने-अपने कर्मानुसार जिव मरते और पैदा होते है,दुःख,सुख भोगते है|तुम जन्म के साथी हो कर्म के नहीं |
१४१-एक घडी कोई भगवान का नाम मन लगाकर अगर करे तो ५९ घडी की भगवान माफ़ी दे देते है|
१४२-भगवान का भक्त वही होता है,जो अपने को सबसे निचा मान ले|दीनता आ जाय,शांति मिल जाय|मान बड़ाई में न पड़े|माया(सब |सुकृत=ताप धन)चाट लेती है|
१४३-हर एक युग में दुखी सुखी रहते हैं|कर्म अनुसार भोगना पड़ता है|एक घडी भगवान में मान लग जाय तो ५९ घडी की भगवान माफ़ी दे देते है|पाप नाश होते हैं,वह सच्चा दरबार है,कोई एक घडी मन नहीं लगाता|बेमन जपने से गैर हाजिरी में लिखा जाता है|
१४४-भगवान प्रेम के बस है|
१४५-जब बाबु महाबीर प्रसाद और रामसिंह जी बीमार हुवें,तब डा०,बैध,ज्योतिषी जब जबाब दे दिए|हमारे पास पत्र आया|हम राम सिंह के लिए सर,और महावीर प्रसाद के लिए धड भगवती को मानदिया,तो राम सिंह ९ वर्ष के बाद विदा हुवे|महावीर प्रसाद अभी मौजूद है|तब भगवती ने कहा,अब शरीर हमारा हो गया है|हम तुमको दान,जप,पूजन,कीर्तन,पथ का और परउपकार भजन बताने का हुकुम देती हैं|जो मन लगाकर करेगा,भगवान भला करेंगे|तब से यही बताते हैं|जिसका भाव गुरु या देवी देवता पर होता है,उसका विस्वास भी अटल होता है,तब कार्य फलीभूत होता है|
146-दोहा:-जेहि बिरिया जेहि बैसवा,जेहि बिरिया जेहि बैस|
                  तुलसी मन धीरज धरो,हुईहै ता दिन तीस||
              सियावर राम चन्द्र की जय|
यही साईत हम जानते हैं और मानते है,और नहीं जानते|
बेकार है चिंता करना,सोच करना,दिमाग खराब करना||
                     |हुईहै वही जो राम रची राखा|
                      को करी तर्क बढ़ावे शाखा ||
१४७-बेकार है अपनी-अपनी होशियारी छांटना|कोई कहता है यह अर्थ सही है|जब सही अर्थ जाना जावेगा तो,उससे अनर्थ नहीं होगा|वही अर्थ समझो सही है|कटु वचन तो सह पते नहीं,दूसरों को उपदेश देतें हैं|अपनी तारीफ सुनकर मस्त हो जाते है|यह द्वैत महाविक्राल(बहुतभयानक)है|मति की गति मार देता है|यह पाप का रूप है|सैकड़ो किसम के पाप हैं|लिखने में तकलीफ होती है,इससे लिखते नहीं|जितनी खोपड़ी है,सबके स्वभाव न्यारें न्यारें है|वह पैदायशी है,छूटते नहीं हैं जब तन मन से लग जाय प्राणों का लोभ छोड़ कर,तब भगवान पलक दरियाई (पलक झपकते ही कृपा करते)हैं,स्वभाव बदल देतें हैं|
१४८-यह शरीर परस्वार्थ (और)परमार्थ के लिए मिला है|न भजन हो तो परोपकार में ही लग जाय|तो चौथे बैकुंठ में पहुँच जाय|अपने शरीर से किसी का दिल दुखाना,निचा दिखाना महा पाप है|बड़े भाग्य से नर शरीर मिलता है|इस शरीर के लिए देवता तरसते हैं|यह कर्मभूमि है|यहाँ की अच्छी कमाई से भग वान के धाम में बास होता है|खराब कमाई से नरक में बास होता है |
१४९-भगवान के हजारों नाम है|एक में मन लगे तो मुक्ति भक्ति सब प्राप्त हो जाय|जैसा जिसका भाव होगा ,वैसा फल मिलेगा|
१५०-भगवान और भगवान के भक्त हर जगह मौजूद है|
१५१-भगवान भाव के भूखे हैं|अपना भाव विश्वास बनाओ|जिव की गति भाव से होती है|
१५२-जो पुराना संस्कारी है,उसे तो भगवान जल्दी मिलतें हैं,भोजन सदा सतोगुणी करना चाहिए |रजोगुणी-तमोगुणी भोजन से भजन नहीं हो सकता|तमोगुणी भोजन से क्रोध बढ़ता है,रजोगुणी कामवासना पैदा करता है,यह भोजन नरक को ले जाता है|ईश्वर-प्रेमी साधक इसको त्याग दे तभी पार हो सकता है|
१५३-भगवान पापी की प्रार्थना सुनते है,जब उसमे दीनता आ जाती है,तब भगवान दयालु होकर अपना लेते हैं|
१५४-भगवान से कुछ भी मत मांगे|उनके उपकारों को हमेशा याद रक्खे |
१५५-भोजन पकाते समय अच्छे-बुरे विचारों के परमाणु भोजन में जा मिलते है,भोजन बनाते समय रोटी बेलते समय भगवान का नाम जप करते रहो तो भोजन सात्विक बनेगा|
१५६-दान से धन,ध्यान से मन,और स्नान से शरीर की सुद्धि होती है|
१५७-सूर्य नारायण प्रत्यक्ष भगवान है|
१५८-इन चार प्रकार के मर्दों के कारन जिव भगवान को भूल जाता है|विद्धा जवानी,द्रव्य (धन)और अधिकार |
१५९-समै(समय)के अनुसार काम करने से देवी देवता खुश होते है|कर्जा लेकर धर्म करना,गया करना,फलीभूत नहीं होता है|गौरांग जी,कृषण भगवान,राम जी,नारायण जी,सब देवता प्रेम के भूखे हैं|सबरी के बेर,सुदामा की मकाई चावल,विदुर के केला,कर्मा की खिचड़ी,मलूक साहब का चावल का टुकड़ा,रघुनाथ का सडा भात खाया,जो पसु कुत्ता नहीं खाता है|सब लिखा गया है|
१६०-कर्जा लेकर करने से लिखा नहीं जाता,काट दिया जाता है|भगवान को दिखाऊ काम पसंद नहीं|(दूसरों की)हंसी को न डरो,भजन न होगा|करम भरम का नाश (भजन में)जुट जाने से होता है|भगवान के नाम में बड़ी शक्ति है|कोई करता नहीं|
१६१-जब तक संसारी चिंता लगी है,तब तक आंखी कान नहीं खुल सकतेहैं|भन भनाहट पहले सब तरह की होती है|फिर तरह तरह के बाजे बजते हैं|गाना होता है|फिर सब देवी-देवता दर्शन देते है|
१६२-जप-पाठ-ध्यान करने वाला किसी को अपने शरीर से दुःख न दे|नहीं तो (पांचो)सब लुट लेतें हैं|
१६३-हर काम का समय भगवान बांधे हैं,समय पार ही सब काम ठीक हो जावेगा|बड़े बड़े दुःख भक्त झेल डालते हैं|
१६४-जप पाठ,पूजन,कथा कहना,कथा सुनना,कीर्तन करना हवन,सेवा धर्म सब मन के जरिये से होते हैं|मन लग जाय तो तुरंत फल मिलता है|मन न लगा तो चित्र गुप्त खाते में गैर हाजिर लिख दे,अगर खराब काम में मन लगे नरक वाले खाते में लिख देते हैं|भुत भक्त हमसे कहे है-हम तो पढ़ी सुन के कंठ किये हैं,प्रचार करते है|दुनियावी शौक अंदर भरी है|बढियां भोजन,बढियां कपडें,मान बडाई में मस्त है,जो कोई तारीफ करता है,तो बड़े खुश होते है,बुरे करता है तो,रंज होता है|खूब पैसा मिलता है,घर में देते है|घर वाले भी खुश होतें हैं,मन काबू नहीं है|यहाँ मौज करते हैं|मर कर अकेले जायेंगे|हमारे साथ कौन जावेगा?बहार खूब दिन भाव दिखाते हैं|तो पैसा खूब मिलता है|
१६५-पद:-निंदा सुनकर जो खुश होवे |सो सियाराम का पूत|
               अस्तुति सुनकर जो खुश होवे |सो कुपस का मूत|
               निन्दामॉल को धोयिले,अस्तुति मल दे लाद|
               रामदाश नागा कहें,साधक हो बरबाद||
१६६-साधक को मरे कोई,वारे(उसके)जोरे हाथ|
१६८-बड़े महाराज कहते थे-हजारों आदमी बैठे थें,एक आवा|महाराज की उंगली चबा गया,चर-चर |महाराज बोले-भूखा है भाई,आधा सेर मिठाई लाओ,खिलाओ|
१६८-जिस देवी देवता से प्रेम हो आराधना कराईये|रत्न धारण किये कुछ न होगा|केवल देव्रधना से पाप पिछले कट कर मन लगने लगता है-कल्याण होता है|
१६९-चाहे जितना भेष बनाकर तीर्थ,देश-देशांतर घूमिये,यदि कपट है-तो भगवान के भवन  में प्रवेश न प् सकोगे|द्रोह मानने वाला बिना अग्नि के जला करता है|न जगत में सुख न परलोक में शान्ति|
१७०-जब किसीसे बैर न हो,अपना लड़का,और चमार का लड़का बराबर समझे तो भगवान खुस रहते है|तो आशीर्वाद वहां भेज देतें हैं|गंदे दिल से वह आशीर्वाद नहीं जाता है,लौट जाता है|
१७१-देव दर्शन,सेवा और जप से कीर्तन से,पाठ से कल्याण होता है,जिसका मन जिसमें लग जाय|इसमें सबसे निचा अपने को मान ले|दीनता आ जाय शान्ति मिल जाय|बेखता,बेकसूर कोई गाली दे धक्का मारे तुम्हे रंज न हो|कोई तारीफ करे तुम खुश न हो|झूठ न बोलो|किसी का जिव या जीविका जाती हो तो झूठ बोलने में दोष नहीं है|अपनी सच्ची कमाई का अन्न खाव|सबके सुख दुःख में शामिल रहो|बेईमान का अन्न न खावे|सादे भोजन,सादे कपडे पहनो|अपने परिवार का पालन करो |एक नीच जाती का बालक हो,उसको अपने पुत्र समान मानों|किसी का कोई काम काज हो बिना बुलावे जाये|काम सधे कर दो|बहुत बातें हैं कहाँ तक लिखें|कोई चल नहीं सकता|
१७२-जिस अन्न से,फल से,पेट साफ रहे वही खाव|
१७३-मान अपमान भजन के बाधक हैं|घूर(कूड़ा दान)बन जावो पट खुल जाय|भगवान की लीला भगवान की लीला भगवान जाने|अपने को सबसे निचा मान लो,भजन तब होगा|यहाँ की इज्जत पर लात मारने पर वहां इज्जत मिलती है| 
१७४-जहां के अन्न जल जे दिन का होता है तै दिन भगवान उसे वहां रखते है|वैसे न वह जा सकता है|भगवान खुद ब्रह्मा के लिखे को मानते है|जिनका संसार बनाया है|
दोहा:-राम न जाते हिरन संग ,सिया न रावण साथ |
          जो रहीम भावी कतहूँ,हॉट आपने हाथ ||
१७५-सीताराम-सीताराम जपा है|नाम के अन्दर सब धर्मो ग्रंथो का समावेश  है|सब नाम के अन्दर है|जब साधक दिन बन जाय और शान्ति मिल जाय,अपने को सबसे निचा मान ले तब देवी देवताओं की कृपा मिल जाती है|सभी देवी देवता प्रकट होकर आशीर्वाद देतें हैं|
१७६-एक साधू को समझाना:-
जब चना की रोटी बिना नमक के खालो तब भजन होगा|माल पूवा,तसमई(खीर)पाकर भजन न होई|सारा खेल मन का है,अच्छा कर्म करेगा अच्छी गति खराब कर्म करेगा खराब गति|
१७७-कबीर जी,रैदास जी,पलटू जी,जगजीवन जी,जितने संत भारत में हुवें हैं सबका एक मत है,कोई द्वैत नहीं किया|बहुत भक्त मन मुखिया बिच में पर्दा डाला,पर सच्चे भक्तो ने नहीं माना है|भगवान अधम उधारन हैं|
१७८-एक रंडी(वैश्या)थी|उसने एक साधू से पूछा-हम भी भगवान को भोग लगावेंगे|साधू ने कहा-तुमने बहुत पाप किये तुम्हारा भोग नहीं लगेगा|रोई खूब|फिर साधू को दया आई,तब साधू ने कहा अच्छा भोग बनाकर लाओ|भोग बनाकर ला रही थी,की अशुद्ध हो गयी,भगवान ने मत्था झुका दिया-भोज लगा लिया,भगवान भाव के भूखे है|
१७९-जिस देवता को पकड़ो जप पाठ-पूजा करो,तब धुकुर पुकुर न करो-तब काम बनेगा|देवता सब जानते हैं|बनुआ (दिखावटी)भक्त न बनो|
१८०-दीनता आई नहीं-प्रेम पथ पाई नहीं|
१८१-एक साधू थे,उनके दाढ़ी जाता नोच ली बदमास ने|साधू बोले-क्या खायिहो,क्या खयिहो(खावोगे)?यहाँ मार डालते|बताओ,साधुता कैसी?हम फत्कारित नाही किसीको|
        पद:जिक्र करते हैं,किसी का न बुरा चाहते हैं|
              सब में लखतें हैं,सदा मस्त बने रहतें हैं||
                     (जिक्र=स्मरण ;लखते=देखते)
१८२-जो सबका भला चाहता,उसका भगवान उसका भला करते हैं जो अपने को सुख देकर दूसरों को दुःख देतें हैं,वे राक्षस हैं|
१८३-भगवान गुड से गुड धनिया ,चना से खुश रहतें हैं अपना सच्चा भाव होना चाही|
१८४-सबको पैसा चाही,भगवान नहीं|पहले गे भैस का बच्चा पैदा होने पर १०-१२ दिन का दूध काम में नही लिया जाता था|अब शुरू से ही हलवाई खोवा बनाकर बेचने लगे हैं|बताओ,पेड़ा का भोग भगवान को कैसे लगे?बेईमानी की हवा चल पड़ी,लाई गुड का भोग लगाना ठीक है|
१८५-भजन में सहन शक्ति की बड़ी जरुरत है|कोई मुते,थूके,रंज न हो|सब जीवो में भगवान हैं-सब जीवो पर दया करे|हम सब जाती के(जनों की),मेहतर,चमार,की टट्टी धोएं हैं,इसी से पट खुल गए|अपनी सच्ची कमाई का सदा भोजन होगा,तब वैसी धातु,मन,बुद्धि बनेगी|तब भजन हो सकेगा|
१८६-एक मल्लाह सीता पुर में था,वह कंठ से राम राम कहता था,उसी से सब देखने-सुनने लगा|
१८७-मन खराब कम में,बढियां खाने में,दूसरों की बुराई सुनने में,दूसरों को कष्ट देने में लगता है|तब शांति कैसे मिले?मन बड़ा बेईमान है,अच्छे काम में नहीं लगता|
१८८-कौशल किशोर शुक्ला,उन्नाव का पोता ३ या ४ बरस का आया|भगवान कृषण की नक़ल से,खड़ा होकर मुरली की दशा में खड़ा होकर,महाराज जी से प्रार्थना करना शुरू किया की हमें भगवान का दर्शन कराओ|महाराज कहें ''होंगे''|तब अपने बाबा से कहा की यह नहीं कहा-स्वप्न में होंगे की जागृत में|तब फिर प्रश्न किया|तब महाराज कहें-भगवान बालको के साथ खाते खेलते हैं|तब शांति मिल भई|हमारे सामने की बात है|
१८९-हमारें एक भक्त हैं-गाजियाबाद रहें,कलकत्ता रहें,अब मुंबई में हैं,पञ्च हजार पातें हैं|हमसे कहे-डालडा में कबूतर,सूअर की चर्बी परती है|बताओ,भगवान को भोग लगता है-नाश होने वाला है|बल बुद्धि,तेज सब हत(समाप्त)हो गया डालडा खाने से|
१९०-साल में एक दफे किसी पंडित से जन्मांग (कुंडली)विचार करा लें|जो ग्रहखराब हो,उनका जप दान करा दे|बिना उनका हक़ दिए,दवा,जप,पाठ,पूजन काम नहीं देता|राम जी को शनिवार खराब था १४ बरस बनवास दिया|कांड,मूल फल खाते थे|देवता किसी का हक़ नहीं बंद करते है|
१९१-जिसे सो$हंओंकार,ररंकार,श्रीमन्नारायण,महाविष्णु सबकी प्राप्ति हो जाय|जो हर शै(वस्तु)से रोम रोम से शब्द होता है-वह अशुद्ध शब्द मुंह से निकल सकता है|मुसलमानों ने भी लिखाया है|
१९२-जो सतोगुणी है उनके लिए सतयुग है,जो रजोगुणी है उनके लिए द्वापर है,जो तमोगुणी है उनके लिए घोर कलयुग है|
१९३-लगभग १८-२० वर्ष पहले की बात है,की रात में श्री नानक देव जी ध्यान में प्रकट भये,वार्तालाप हुयी,मैंने पूछा-सभी जिव क्या आवागमन से रहित हो जावेंगे?तो नानक जी ने कहा-नहीं निकल पावेंगे|प्राणांतकाले (शरीर छूटने के समय)दाहिने हाथ में गंगा जल लेकर तिन बार राम राम कहकर फूंक मारकर बतीसी खोल कर जल मुख में डाल दो तो जिव आवागमन की बीमारी से छुटकारा पा जाय|
१९४-कबीर जी ने कहा है:-
         एक घड़ी हरि की तो ५९ घडी घर की|कौन करता है?जो चीटी को आंटा देते है,वै बैकुण्ठ जाते है|यह भजन की शाखा है|परोपकार के सामान कोई भजन नहीं है|भजन करना तमासा नहीं है|
१९५-संत गोरख नाथ के जन्म की कथा :-
      गोरख नाथ जी गोबर से पैदा हुवें थे,एक स्त्री को भभूत दी थी खाने को,उसने घूरे(कचरे)में गोबर में डाल दी|जब उधर कभू आये बोले-मुछंदर नाथ जी (की)बभूत खाई?उसने कहा डाल दी|बोले कहाँ डाली,तो उसने बताया |हटाया तो प्रकट हो गएँ गोबर से|
१९६-विवाह में आयु,आपस में मेल,संतान जोग,गुण,वरण,जानने की जरुरत है|जल्दबाजी या ठीक से मिलन न करने से बाप व बिच वाले को नरक होता है|
१९७-दिखाऊ काम भगवान को ठीक नहीं|दुनियां जानने (को बताने)से भगवान के यहाँ नहीं लिखा जाता न भगवान खुश होते है|
१९८-आंख के देवता सूर्य हैं|ग्रह खराब होने से बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं|साल में जनम पत्री दिखाकर जप दान कर दे जरुर|जप में अब हम खिचड़ी नमक,लकड़ी का दान औकात माफिक करवा देते हैं|जिनके पास पैसा नहीं है-चिड़िया को चावल,चीटी को आंटा बता देते हैं-कल्याण हो जाता है|
१९९-राम दस नागा बाबा,पंजाब के रहने वाले थे|माता का नाम अन्नपूर्णा,पिता का नाम महादेव था|एक बार ये ऋषि केश में गंगा जी में कूद पड़े|तिन माह बाद निकले|शरीर में काई लग गयी थी|यह जल में जल,मिटटी में मिटटी,वायु में वायु अग्नि में अग्नि हो जाते थे|
२००-जो कहते है-हम,हमार,नात,भाई,परिवार ठीक रहे,दुनियाँ मरे हमें क्या-उनका भला नहीं होता है|जो दुसरो का भला करता है,उसका भला होता है|
२०१-लखीमपुर में भुइपुर्वानाथ महादेव राम जी के पुरिख(पूर्वज)के स्थापित किये हैं|
२०२-सबके दुःख से दुखी-सबके सुख से सुखी,तब भगवान खुस रहते हैं|ऐसा काम करो,भगवान खुस रहे,आशीर्वाद हो गया|
२०३-कामी क्रोधी की गति हो जाती है,पर सूम(कंजूस)की गति नहीं होती|
२०४-जिसका जाहे से प्रेम हो,उसके उसी से पट खुल जाते हैं|
२०५-जब-तक आणखी कान नहीं खुलते,तब तक क्रोध आता है|तुकाराम के दो स्त्री थी,एक दुष्ट थी उसका ज्यादा आदर करते थे|जो बैर मानता उसकी गति नहीं होती|बैर न मानो किसी से|
२०६-हमने दो गौ की कसाइयों से रक्षा की है,एक कसाई दो गोउ ले जा रहा था|हमने पूछा,कितने की लियो हो?बोला ६० रु० की|तो हमने कहा ले लो|बस गौ बस हमारे साथ चल दी|
२०७-हम कुत्ते के बच्चे को दूध से रोटी मॉल कर खिलाते थे| बिस्खुप्डा(बड़ी जंगली छिपकली),सब जीवों पर रक्षा करते थें|
२०८-अयोध्या जी में चमार,पासी,मेहतर की टट्टी साफ करते थे,कपडा पहना देते थे|घर वाले घ्रिडा करते थे,हम उठा लाते,टट्टी साफ करते|
२०९-एक गाढ़ी के कीड़ा पर (पड़)गएँ थें|अपने हाथ से दवा बनाकर दे आये|दुसरे दिन पाछने गए,कुछ लाभ हुवा|
२१०-जहाँ लड़ाई झगडा हो,वहाँ पर न खड़ा हो|
२११-किसी के लिए कहा:-
यहाँ आने से लाभ न होगा-न तुमसे प्रेम,न हमसे प्रेम,न मृत्यु का भय है|चार अक्षर का संकर जी का मंत्र ११ माला मन लगा करें तब लाभ होगा|खान पान शुद्ध सादा हो|
२१२-साधक बहुत कम बोले|पूछे,जरा सा बोल दे|
२१३-उपदेश समझावे नहीं किसी को,जब तक अंदर के आणखी कान न खुले|सब दिखाऊ काम हो रहा है|ढोंग भगवान को,हमको पसंद नहीं|
२१४-समय हो और लापरवाही करै तो नागा (आनुपस्थिति)समय न मिले तो नहीं नागा में कटता|कोई आवै,घर में कहला दो वह स्वागत करै|नेम तेम छोड़ देने से शरीर नहीं  चमडा रह जायेगा|सब चौपट|
२१५-जैसे शौच का लोटा न माजा जाय तो बेकार|वैसे शरीर और मन बिना नेम तेम(समय से भजन)के|
२१६-जिस सुनाने वाले के आंखी कान (खुले)नहीं हैं,उसकी कथा न सुने|बिना सिद्धो के वाक्य पर चले किसी संत की ताकत नहीं,उसको सुधर सके|जबानी जमा खर्चा से काम न चलेगा|मरना पैदा होना लगा रहेगा|
२१७-जिनको धीरज विश्वास है,उन्हें हमसे कहने की जरुरत नहीं परती|सब काम भगवान ठीक कर देते हैं|सच्चे भक्त हैं कभी पत्र तक नहीं देतें|२१ आदमी ४० ओरतें हैं|हम उन्हें किसी से नहीं बताते|दुनियां जानकर उनको परेशान करेगी|समै(समय)ख़राब करेगी|अपना कुछ न करै उसे सब मिल जाय,दुनियां यह चाहती है|करना पड़ेगा तब गति होगी|
२१८-एक कन्या छः माह की थी,उसकी माता बद्री नारायण गयी|थक जाने पर कन्या को एक झाले में ढँक कर छोड़ दिया|लौट कर आई तब देखा कन्या अपना अंगूठा पि रही है,शरीर दाग दाग हो रहा है|कन्या का विवाह हुवा|लड़के वालो ने बड़ा कष्ट दिया|३२ की उम्र में शरीर छोड़ा सब भोग है|
२१९-पद-बरगद,पीपर,पाकर,गुलर|
              चिड़िया खाय करै खूब हल्लर||
न चार पेड़ लगा सके तो एक ही पेड़ लगा दे,यह भंडारा चिड़ियों का है,बैकुंठ ले जाता है|
२२०-पद: ईश घट में ही छिपा था,हमे मालूम न था|
               द्वैत का पर्दा पड़ा था,हमे कुछ होश न था||
२२१-जब किसी देवी देवता से प्रेम होगा तो नेत्रों में आंसू आ जायेंगे,रोम रोम पुलकावली (रोमांचित)होने लगेगी,कंठ गद गद हो जावेगा|यह मन लगने की पहली सीधी पर पैर रखना है|
२२२-पद:जब टेम नहीं तो नेम नहीं|
              जब नेम नहीं तो प्रेम नहीं||
              जब प्रेम भया तब नेम गया|
               जब नेम गया तब टेम गया||
२२३-भगवान सबका समय बांधे हैं,समय को कोई टाल नहीं सकता|लड़का,लड़की आदमी धन,मकान खेती,सब भगवान की है,अपना कुछ नहीं है|समय,स्वांसा,शरीर भगवान का है|जो अपना माने है,वह मौत और भगवान को भूला है|पेट में भगवान खाने को देते थे|जब पैदा किया तो माता जी का दूध देने लगे|अब सयाने भये तो अन्न पानी देते हैं|तुम सब क्या जानो,अपनी अपनी भाग्य ले कर आते हैं,वही खाते पीते हैं|नौकरी जो ईमानदारी से करते हैं,उनकी दोनों तरफ जैकार होती है|जो बैमानी करता है उसके पैसे सब घर के लोग खाते हैं,सबको नरक होता है|
२२४-मन्त्र ले लिए सब पाप नष्ट हो गया|नाम में बड़ी शक्ति है|जो कहा जाय वैसे चलो,बात मानने की जरुरत है|
२२५-कष्ट में विशेष भजन करना चाहिए,शरीर छुट जाय तब|शरीर बीमार हो-(तो)मॉल मूत्र से निपटकर कपडे बदल कर गंगा जल,तुलसी दल,रेणुका (रज)मुख में डाल ले|लेटे लेटे न माला हो सके,(तो)मुख में जपे |पूरण कृपा करै हरी तापर|
२२६-ऐश,आराम छोड़ देने पर भजन हो सकता है|आडम्बर छोड़ कर नेम टेम (समय पर अपना जप पाठ)करना पड़ता है|शाम की रोटी सवेरे से आधी खाय|प्रातः की भोजन की अपेक्षा सायं का भोजन आधा होना चाहिए |
२२७-दिली शौक होना चाहिए|भजन रात में ही होता है|१० पर सोवो ३ पर उठो,आलस्य पर लात मारो आलस्य में भजन न होगा|और पाप भजन से नासै(नष्ट हो जाता है,पर)आलाश्य की माफ़ी नाहीं|
२२८-अभी आप ने स्वांसा,शरीर,समय वैभव,स्त्री-पुत्र,परिवार का मान रक्खा है|अब भगवान का मानो| 
२२९-पद: प्रेम न बाड़ी उपजै,प्रेम न हाट बिकाय|
               रजा प्रजा जेहि रुचे,शिह दरी ले जाय||
२३०-पद: अंसुअन जल सींच सींच,प्रेम बेल बोई|
               अब तो बात फ़ैल गयी,जाने सब कोई||
२31-भजन कस्थान:-
        घर में एक साफ़ सुथरी हवादार जगह बनाले|उसमे कोई न जाय|अपना,आसन,माला अलग रक्खे|१०पर सोवें ३ पर उठे|भजन रात में ही होता है|दुनियां जगी मन भागी|सादा भोजन से मन सादा हो जाता है|लहसुन,प्याज,करेला,कडू मुली,मिर्चा, चटपटी चीज काम वासना पैदा करती है|मीठा खाने से मन लबरा होता है|सब खाने से भजन न होगा|अवगुण जीभ में हजार हैं|एक बार खाने से पाचन सकती ठीक रहती है|आलस्य नहीं आता|
२३२-अपनी नेक कमाई का सादा भोजन भगवान को अर्पण करके पाने से रोग नहीं होता|लाभ रहता है|हजम ठीक रहता है|दस्त साफ़ रहता है|शरीर हल्का रहता है|तकलीफ बनाने वाले को नहीं होती|खाने वाला जल्दी खाकर उठ जाता है|कई बर्तन नहीं लगते|भजन में मन धीरे धीरे लगने लगता है|मति शुद्ध होकर पाप काटने लगते है|
२३३-भगवान की लीला भगवान जाने|जितना जनवे(ज्ञान करा देवें)संतोष मान लें|जो शहीद लोग लड़ाई में मरे,सर काटा गया|वह देखने में आये सर हाथ में लिए जा रहे है,जब कोई मिला|
२३४-ताम्बे की कटोरी में गाय के घी में बत्ती बनाकर घर के ताखे में पूरब पश्चिम मुह हो,दिया जलने के पूर्व नित्य जला दे|रविवार-मंगलवार से सुरु करे|सौच जाने पर नहा ले|वैसे हाथ पैर धो ले|जलाकर हनुमान जी के हाथ जोड़ ले|आला पोत दे,फिर छुवे नहीं|ताम्बे की कटोरी हो|सैकड़ों बरस के भुत भाग जाय|लहसुन प्याज घर में न रहे|छिलका तक|
२३५-साल में एक बार जो ग्रह खराब हो,उसका जप दान करने से उनका हक़ निकल दे|अब हम ग्रहों का दान जप में खिचड़ी,नमक,लकड़ी का पैसा औकात माफिक,गरीबों को बंटवा देते हैं|
२३६-बेईमानी की कमाई न खाए|खुद नरक छोड़ जाय|लडको को नरक होता है|किसी सी से बैर न करै|सब जीवो पर दया करै|
२३७-खुद तकलीफ सहे,दूसरों को आराम पहुँचावे|
२३८-पहले वाली चाल छोड़ कर,ऋषि-मुनि जो कह गयेंअब ऐसी चाल चलो|बात मानने की जरुरत है|तब कल्याण होगा|
२३९-(हमारे द्वारा दी हुयी)पुस्तक दो बार पढ़कर,फिर हमसे पूछना|तुम इस रीती सर चाल पाओगी,तब तो भगवान के यहाँ रजिस्टर पर नाम लिखाओ नहीं तो बेकार पूछना है|रहनि,गहनि,सहनी पहले लिखी जाती है,तब सब भजन|सेवा धर्म से ही पट खुल जाते हैं|दया धर्म के बिना गति नहीं होती है|
२४०-कृपा का अभी श्री गणेश है|चपलता छोड़ दो,देखो आगे क्या क्या होगा|भजन होने से जब मन लगने लगेगा,ध्यान होने लगेगा|लड़का लड़की सयाने होने पर ब्रह्मचर्य होना ही चाहिए|साधक को इसे घर का नरदहा समझ कर त्याग देना चाहिए|
२४१-परिवारदार कितने हजार भजन करते है,और दया धर्म की मूरत हैं|कहाँ तक लिखे|हमें ५२ साल अयोध्या में हो गए|बड़े बड़े अफसर भजन करते हैं,परोपकार करतें हैं|यह सब घर में ही होता है|३३ करोड़ देवता,८८ हजार ऋषि मुनि हैं,सब के परिवार हैं|राम जी ४ बाई थे,सबके दो दो पुत्र थे|भगवान ने बराबर राज्य बांटा है|कृष्ण भगवान के पुत्र-पोता थे|विरक्त सुकदेव जी,नव योगेश्वर,नव नाथ,संकड़ी,लोमस जी,यह सब अजर अमर हैं|नारद की दुरदसा(दुर्दसा)हो गयी ६० लाख साधू हैं,उसमे ६० भजन नहीं करते|सब बातें सीखे,पेट पालते हैं|
२४२-एक अहीर था,आश्रम में आया|रामायण पथ किया|बोला महाराज भूख प्यास हरि गयी|यह भक्त के लच्छन हैं|
२४३-महाराज कह गए,जो भगवान को जान गया भगवान का हो गया,जाती कोई हो,उसकी हमसे ज्यादा सेवा करना |
२४४-दो माह गुरु भगवान बैठे,ज्यादा नहीं|एक दिन आलस्य आया,महाराज ने लकड़ी घोस दी|बस उस दिन से आलस्य नहीं आया |
२४५-ब्रह्म मुहूर्त २ बजे से लगता है,सब ऋषि उनकी पत्नी २बजे उठकर भजन करती थी|भजन में सहन शक्ति की बड़ी जरुरत है|सब जीवो पर दया करे|बातें पकड़ कर चलो तो भजन करो,न तो न करो|जान कर न चलने से नरक होता है|जब अपने इष्ट में रात दिन निरंतर मन लगा रहे तब कुछ होय|निरछल जिव पर ही भगवान कृपा करते,प्रत्यक्ष होते हैं|१० गारी(गाली)कोई देय,बोले नहीं|
२४६-पद:- वजहन जग में आय के,करिये ना तुम मान |
                दया धर्म ना छोडिये,जब तक घट में प्राण ||
२४७-पद:-  राम दास नागा कहै,होय भक्त सो पास ||
                 दया धर्म छोड़े नहीं,जब तन में साँस ||
२४८-पद:- ईमान जिसका हो मुसल्लम ,
                  रहम जीवो पर सदा,
                अल्लाह का प्यारा जानिए,
                तन मन से सच्चा वह गदा(भक्त)||
२४९-बहराईच में एक धोबी है,उसे गंगा जी से वार्ता होती है|हमारे तुम्हारे लिए गंगा जल है,उनके लिए वह स्वरुप है|
२५०-चमार,पासी,मेहतर भगवान के अनन्य भक्त हो गये|आज हम ब्रह्मण,क्षत्रिय,वैश्य कुल में जन्मे बढियां खाना,बढियां पहनना जाना और कुछ नहीं|अहंकार रावण,कपट मारीच,यह घुसे हैं|कुछ करने नहीं देते|मान,अपमान जीव को खाये लेते हैं|  
२५१-भाव होना चाहिये|सब दिखाऊ काम करते हैं|यह सब आडम्बर भगवान को पसंद नहीं|
२५२-(जो)सबका भला चाहै,वही मनुष्य है|
२५३-सिद्धियाँ नरक का घर हैं|
२५४-देवी देवता को पकडे तब धुकुर-पुकुर न करै-(वे)सहायता तब नहीं करते|
२५५-१)लट संग:व्यर्थ वाद-विवाद |
        २)बद संग:दुनियावी संग 
         ३)सत्संग:गुरु-सद्गुरु का संग|ध्यान में बैठे हो,देवी देवता प्रकट हों|
         ४)महासत्संग:ध्यान में प्रभु से वार्तालाप |
२५६-महाराज कहें की हमसे ज्यादा हमारे मेहतरानी को मानो,सेवा करो|घर वालो की सेवा सभी करते हैं,जब दूसरों की सेवा करोगे,तब भगवान खुशरहेंगे|भजन यही की सह लो दूसरों को कष्ट न दो|
२५७-सच्चा प्रण भगवान निभा देते हैं|
२५८-साधक को सतोगुणी भोजन न मिले,लंघन (उपवास)कर ले|
२५९-सारे विश्व की अमीरी आ जाये,मस्त मत होना|
         सारे विश्व की गरीबी आ जाये,तो दुखी मत होना||
२६०-हमने सब जाती की सेवा की है,मल मूत्र धोया है|
२६१-भजन घर में ही होता है|घर छोड़े नहीं होता भजन|बड़े बड़े अफसर करते है|प्रेम की जरुरत है|दिली शौक होने पर भगवान शक्ति देते हैं|
२६२-वाक्य ज्ञान,मुर्दा ज्ञान से काम नहीं चलता|१०० जूता कोई मारे क्रोध न आये,तब भजन होगा|कोई लागत थोड़े,सब मान बड़ाई में पड़े रहतें हैं|लिक्चर,व्याख्यान रहता है व्यर्थ,सब वाह वाह में परे हैं|    
२६३-२५० सिद्ध अरब में हैं|उन पर कोई थूकता,कोई मूतता,बोलते नहीं|जब उठते हैं,धो देते हैं|सहन-शक्ति के बिना भजन में लाभ नहीं|सबसे तुच्छ अपने को मान ले|बिना मान अपमान फूंके कुछ न होगा|
२६४-दो नदी है,सुख की,दुःख की|सुख की दुर्लभ प्रेम की नदी,ऐसी की सब कूड़ा कचरा बहा देती है|
२६५-गीता,रामायण कंठ(रटे)हैं पर मन काबू नहीं तो क्या फायदा?
२६६-कीसी भक्त स्त्री से कहा:-
          हम तो दो किताब पढ़े हैं,तुम तो दसवा में हो|और लड़का,लड़की,तुम्हारी उम्र,रायजादा की जोड़ी जाय,तो हम बहुत छोटे निकलेंगे|हर हालत में तुम्ही बड़ी निकलोगी,हम छोटे हैं|हमें तुम दर्शन देने आती हौ|तुम पर भगवान की दया है,इतना परिवार पालन करती हो|            

 २६७-अरसा हुआ,एक भक्त(संत)ने प्रकट होकर बताया था-वही फिर आज बताया है,(२४.४.७६.२:३० शाम)रंग रूप सब मास्टर ने लिख लिया है|
                   
                    कहैं जैसी सुनो वैसी |
                     छिमा बिना साधुता कैसी||
  २६८-पद:-भक्तों छिमा तुम्हारी नारी|
                 हर दम रमन करौ ताके संग,तब होवै सुख भरी||
                  हो संतोष पुत्र जब पैदा,जियतै देवे तारी||
२६९-पद:-अपढ़ पढ़ा कछु मै नहीं,
                भक्तों मानों बात हमार
              अजर अमर सिया राम ने,
               किना(कीन्हा)प्रेम में मत वार|| 
२७०-पद-सियाराम की करौ मुलाजिमती,जियती होहु भव पार|
               नाम की धुनी,परकास,समाधि हरदम हो दीदार||
               सुर-शक्ति सब दर्शन देवैं,बोलें जय जय कार
                कहैं मुलाजिम शाह इसी से,भयो मोर निस्तार ||
२७१-मन्त्र,जप से,पथ-पूजन से,कितने अजर अमर हो गएँ हैं|जिसकी सुरति अपने इष्ट में लग जाय,वही अपने इष्ट का हो जाता है|सब रूप धारण कार लेता है|जैसे भगवान सब जगह मौजूद हैं वैसे ही वह अपने को हर जगह देखता है|
२७२-गोस्वामी जी ने लिखा है:-
        चौ०-ईश्वर अंश जीव अविनासी|
                चेतन अमल सहज सुख रासी||
        अर्थ-चेतन कार अमल यानि साधन करी लिया-पट खुल गए|मरना पैदा होना छुट गया|
२७३-कबीर जी न कहा है:-
          दोहा-मरना मरना सब कहैं,मरना लखै न कोय|
                  ऐसा मरना जो मरै,बहुरी मरण नहीं होय||
२७४-सरनी(शरण),मरनी,तरनी,सब जियतै हो जाता है|सारा खेल मन का है|
२७५-खली माला फेरने से नहीं भगवान प्रसन्न होते|चीटीं आंटा-चिड़ियों को चावल खीलाने से बैकुंठ होता है|सड़क पर खूंटी लगी हो निकाल दो|वहां सब लिखा जाता है|बिना दया भजन से लाभ न होगा|
२७६-हाथ पैर धोकर पुर्वामुख होकर भोजन करो|
२७७-मौन होकर भोजन (भूख से कम)करे|
२७८-भगवान का आवाहन,भोग लगाकर भोजन करै|
२७९-जो बताया जाय(उस पर)चलने लगे|सब जीवो पर दया करो,भगवान सबमे हैं|बिना दया धर्म,सेवा में सहन शक्ति लाये भजन में मन न लगेगा|जिसको भजन करना हो थोडा खाये|भगवान शक्ति देंगे|
२८०-समय,श्वांसा,शरीर भगवान का है|जो अपना मानते हैं मौत और भगवान को भूले हैं|
२८१-भीतर के भाव से हम और भगवान खुस रहते हैं,ऊपर का ढोंग हमें और भगवान को पसंद नहीं|
२८२-अच्छा भोजन,अच्छे कपडे,अमीरों का संग साधक को निचे गिरा देता है|
२८३-जब मन अच्छा भोजन खाने को मांगे तब खराब भोजन देना|नहीं तो अच्छा अच्छा खवा कर तुमको निचे गिरा देगा|
२८४-कबीर जी ने कहा है:-
        आठ पहर साठो घडी ठाकुर पर ठकुराइन चढ़ी|
यानि जो ररंकार की धुनी हो रही है,उस पर सुरति लगी रहै|आपस में मिल गई,जैसे जल और जल तरंग|ध्यान जारी हो गया,सब लोको से उसकी धुनी हो रही है|उस तार को पकड़ कर जीव आटा है|इसके बारे में बहुत लिखवाया गया है|
२८५-एक बार तपस्वी जुन्नुन को रोते देख किसी ने उसका कारन पूछा -वह बोले,गत रात मैंने एक स्वपन देखा|कोई कह रहा था-किअपने रचे हुवे सब मनुष्यों के आगे मैंने संसार रक्खा|उसमें से हजार में से नौ सौ उस संसार को ग्रहण करते हैं|सौ उसका त्याग करते हैं|उस सौ त्यागियों के सामने स्वर्ग कि लालसा रखता हूँ |तो नब्बे स्वर्ग के लोभ में आ जाते हैं|केवल १० उसकी उपेक्छा करते हैं|उनको नरक का भय दिखता हूँ तो ९ डर कर भाग जाते हैं|केवल एक स्थाई रहता है|तात्पर्य यह है-कि हजार में से केवल एक ऐसा होता है जो संसार कि माया,स्वर्ग कि लालसा,नरक भय से भयभीत नहीं होता है|वही मुझे पाता है| 
२८६-सारा खेल मन का है|पुण्य से भोग,पाप से रोग|जो जैसा काम करता है,वैसा स्वप्न देखता है|ईश्वर में लगने से कर्म का लिखा कटता है|जहर के फल बोने से जहर ही पैदा होगा|
२८७-(ऋषि)सब कह गयें हैं,उस पर चलने वाले बहुत कम हैं|इसी से भगवान दूर रहते हैं|जब यह बैटन पर मन लग जाय,तब भगवान पासे हैं|इसी शरीर से जिन्दगी में मिल जाते हैं|तब शरीर छूटने पर पास रखते हैं|आना जाना बंद हो जाता है|किसी कि बुराई मत करो|जो करेगा वही भोगेगा|तुमको अकेले जाना है|नेकी बदी साथ जावेगी|उसी रीती से जन्म मरण होगा|
२८८-हमारे यहाँ पुस्तक(ग्रन्थ)में दो हजार नाम हैं|उसमे सब जाती के भक्त हैं|मुसलमान सात सौ हैं|रंडी भक्त भई(हुई)हैं|उसमे बहुत अजर अमर हैं|
२८९-लोग बड़े बड़े भंडारा करते हैं,और जो सुखी हैं उनको निमंत्रित कर भोजन कराते हैं|उसके द्वारा अपना राजनितिक उद्देश्य सिद्ध करते हैं|परन्तु गरीबो और बच्चों को खिचड़ी खीलाने में पुण्य है|बड़े बड़े भंडारे में खर्चा भी होता है|कोई कोई दिखावे के लिए भी ऐसा करते हैं|ऐसा भंडारा सबके लिए सुलभ भी नहीं होता|
२९०-मन लगता नहीं,मन लड़का,घर,स्त्री,धन में लगता है कि नहीं?वही मन भगवान में लग जाय|भगवान कि शौक होने से सभी शौक मिट जाती है|
२९१-खराब शब्दों के रूप काले होते हैं और नंगे होते हैं|जहां तुम्हारे मुंह से निकले कि रोकर कहते हैं,तुम अनमोल नर शरीर पाकर अपने मुंह से हमें ऐसा बनाकर निकला|श्राप देकर अन्तर होते हैं|शुद्ध शब्द सिंगार किहे बड़े सुन्दर होते हैं|जहां मुंह निकले तो हँसते हुवे आशीर्वाद देते हुवे अन्तर होते हैं|यह लिख्या गया है कि अशुद्ध शब्द जो साधक सुनता है,वह उसके अन्दर                                                              
प्रवेश हो जाते हैं,और उसकी बुद्धि उलट देते हैं|दिमाग खराब कर देते है क्यों कि वह साधक कच्चा है|अगर साधक शिद्ध हो तो उसके अन्दर नहीं जा सकते|शुद्ध शब्द सुनने से साधक के हृदय को बल मिलता है|वे सब बड़े पवित्र हैं|अन्दर पहुँच कर अपना प्रभाव जमा देते हैं|निचे गिरने नहीं देते|इस पर बहुत लिखाया गया है|जो इतने पर अमल करे तो सुधर जाय|जहां अशुद्ध शब्द कोई कहता हो,वहां से साधक उठ जाय नहीं तो साधक गिर जायेगा|अभी उसके आँखी कान नहीं खुले हैं|वह दुसरे से सुनी बात कहेगा|
 २९२-जिसकी बातें होंगी,वह कसूर नहीं किये है,तो उसे दुःख होगा|कहने वाले पर असर आवेगा,बीएस वह गिर जावेगा|
२९३-भजन ध्यान के अभ्यास का स्थान:
तखत बराबर जगह हो,सफाई कि जरुरत है|उस जगह कोई जावे नहीं|देवी देवता मिलते हैं|पेट साफ रहे,सादा सुक्ष्म भोजन करै|भजन करने वाले को सहनशक्ति कि जरुरत है|साधक घुर हो जाय|चाहे कोई कुछ कहे-गली दे या मारे पिटे,बेखता बेकसूर कोई चार बात कहे,हाथ जोड़ दे|
२९४-''ओं क्लीं जूं सः''
मन जप में लग जाय तब सब काम इस मंत्र से होते हैं|जो महा गरीब थे,सब धनि हो गए|फाँसी पर से उतर गये|चार अक्षर का ये शिव जी का मंत्र धन,पुत्र,संकट,यश के लिए किया जाता है|४ अक्षरी मंत्र में हल्का''ग''बोलना चाहिए ''म''नहीं| 
२९५-सारा खेल मन का है|मन इस शरीर को चलाने वाला ड्राइवर है|अच्छी जगह ले जावेगा(तो)जीव कि अच्छी गति होगी|मन के संगी भूख प्यास और जबान,इच्छा हैं|यह सब बड़े चालक हैं|अच्छी चीज खूब खातें हैं|रुखी सुखी के लिए पेट में जगह नहीं है|ऐसे यह बदमास संगी है|बिना इनको काबू किये शुभ काम नहीं होगा|मन लगने कि पहिचान है:-ठौरे (उस स्थान पर)कोई गाना बजाना करै तुम सुन न पावो-तब मन जप या पाठ में लग गया |
२९६-जप का भेद:
पहले सीता जी ने जप का भेद शिव जी को बताया|फिर सीता जी ने श्रुतिकीर्ति जी,श्री माण्डवी जी,और श्री उर्मिला जी को यही उपदेश दिया|यह उपदेश राजगद्दी के १० दिन के बाद सबको किया गया|फिर बारह हजार सखा जो श्री राम जी साथ अवतरित हुवे थे उन्हें दिया गया,वे सब इस पद के अधिकारी हो गये|फिर १० हजार सखी श्री महारानी जी के साथ जनकपुर में अवतरित हुई|ब्रह्मण,क्षत्रिय,वैश्य के घर उनको बताया|हनुमान जी को बताया,लंका में मंदोदरी को बताया|
२९७-जप,पाठ,पूजन,कथा,कीर्तन सुनने से,सेवा-धर्म,देवगन से पट खुल जाते हैं|सारा खेल मन का है|जहां मन एकाग्र हुवा तहाँ प्रेम आ गया,बीएस काम बन गया|
२९८-भक्त भगवान के निरंतर प्रेम में विमग्न रहने से आत्मा परमात्मा का भेद समाप्त हो जाता है|साधक अन्तर में ही आत्मा का साक्षात्कार(दर्शन)करने लगता है|माया के कारन जो भेद था वह समाप्त हो जाता है|
२९९-राम जी के विवाह का कवित १२ कि उम्र में मिला था एक ब्रह्मण आरत पाण्डेय के पिता छोटू पांडे को,उनका लड़का हमें बताया,तो हमें याद हो गया था|
पद:-करत बरात को पयान नर वाह,
        सब सुर गण आसमान में देखत भर हैं|
       डेढ़ कोटि हैं मतंग और तुरंग तीस कोटि,
        पालकी पचीस कोटि पैदल अपार हैं||

      भार वरदार,सवा सात कोटि ऊंट,
      जाती सेवक समूह,पांच कोटि बाजदार हैं| 
      रथ सवा तिन कोटि दशरथ राऊ जी के,
       साठी लाख नौ हजार सांडिया सवार हैं||
३००-जिसका अटल विश्वास होता है,उसका कोई काम रुकता नहीं| 
३०१-भक्तों की यात्रा का पद लिखाये देते हैं|और वहां का बरनन कबीर दास जी का है,चारों बैकुंठन का|उसे देख सकते हैं|हमें लिखने में तकलीफ होती है|बोल नहीं पाते,अच्छर छुट जाते हैं|बहुत बातें भूल जाते हैं|और कमजोरी से इधर का उधर हो जाता है|यह बहुत विस्तार है| 
          ||श्री बचावनशाह जी मेरठ||
जाते भक्त निज धाम को चढ़ी यान हर्षाते हुए |
सुर नर मुनि सभी जय जय करैं निज साज चटकते हुए||
रंग रंग की माला गले में,फूलों की पहनाते भये|
पंखा मुरछल आसा वल्लम,झंडा फहराते भये||

नाचे अप्सरा गान करी करी,फूल बरसाते हुए|
सतगुरु को नैनं लखो,क्यों जक्त में माते हुए||
धुनी ध्यान लय परकाश सन्मुख,श्याम छवि छाते हुए|
देव मुनि भेटैं तुम्हें,हरी के चरित्र गाते हुए||

अनहद सुनो अमृत पियो,पितु मातु के कटे हुए|
लेते कमा जे जन यहाँ,ते बैठी वह खाते हुए||
जिसने न जाना जियत में,ते दोनों दिशि ताते हुए|
पिटे नरक में दूत हरदम,कल न पल पाते हुए||

मानों कहा नर नारी चेतो,क्या हौ बतलाते हुए|
गर्भ का रिन दो चुका,हम सब को समझाते हुए||
खोते समय अनमोल हो,नाहक में अलसाते हुए|
दुर्लभ यह तन चारों पदारथ,देत मन भाते हुए|| 


३०२-राजा राम सिंह जी,गंगवल की यात्रा:-
९.११.७३को शरीर छूटा|भगवती जी ने मुझे बताया की रामसिंह पहले बीमार पड़े तभी से मारकेश(मृत्यु की ग्रहदशा)शुरू था|तुमने उनके लिए अपना सिर और महाबीर प्रसाद,लखनऊ के लिए अपना धड मान दिया|हमें इतने दिन आयु बढ़ा देने की आज्ञा हई,और मैंने अंत समय उनको बैकुण्ठ पहुंचा दिया|तीनो भाईयों के परिवार को समय आने पर वहीँ भेजूंगी|भरत सिंह ने खूब राम धुनी कराई|रामसिंह सुनते थे,बोल नहीं पाते थे|जब शरीर छूटा,गरुण जी ने उनको वसन पहना कर विमान पर बैठाया|पार्षद उनको लेकर उड़ें|तो हम अंतर्ध्यान होकर उनसे पहले पहुंची|रामसिंह ने बताया पहले बैकुण्ठ में दर्शन लक्ष्मी नारायण का किया,चरणों पर पड़े|माता पिता दोनों ने सिर  पर हाथ फेरा|माता ने एक कटोरी में दिव्य क्षीर समुद्र का दूध पिलाया|फिर दुसरे बैकुण्ठ,तीसरे बैकुण्ठ में दर्शन करके,पर नारायण के दर्शन करके,सिंहासन पर बैठ गए|वह सिंहासन पार्षद ले गए|यह जिस पर बैठे है-बहत बड़ा है|काफी जगह सैन करने की है|वहां का हाल हम क्या बरनन करै|माता ने कहा-बच्चा-बच्चा|हम जा रही हैं|रामसिंह ने चरण छुवे|पीठ पर हाथ फेरा और अंतर हो गई|
३०३- राजा रामसिंह के सम्बन्ध में(श्री महाराज जी द्वारा प्राप्त)दिनांक २१.११.७३
१६.११.७३ शुक्रवार की रात में शायद २ बजा होगा-रामसिंह जी आये|हम चादर ओढ़े थे,पैर पकडे|हम मुंह खोला,कहा-कौन है?फिर उठ कर बैठ गए,तो देखा,हाथ जोड़े खड़े थे|बोले,आप का दास रामसिंह|मुझसे भगवती जी ने कहा-तुम्हारे महाराज जी जब से तुम्हारा शरीर छुटा है,बड़े दुखी हैं|तुम जाकर मिल आओ जिससे उनको शांति मिल जाय|उनकी आज्ञा से मै आया  हूँ,रामसिंह से ये बात सुनकर और परिचय पाकर मन में शान्ती आ गयी|हमने देखा छटा छवि १२ बरस की उम्र|समझ गए ये चौथे बैकुण्ठ की सजावट है|
हमने कहा वहां का परिचय दीजिये,तुम्हारा कोई वहां है?तो कहा-हमारी माता-पिताजी शत्रुघ्न,मझले भाई का छोटा लड़का,सीता की माता,सीता के बाबा,सीता के भाई-भारतेन्द्र सिंह|हमने कहा भरतसिंह ने रामधुनी करायी-सो सुना?कहा,सुनता रहे बोल नहीं पाते थे|हमने कहा-अंत समय कोई दर्शन हुवे ?तो कहा-शंकर जी,हनुमान जी,पारवती जी,गणेश जी,दुर्गाजी,कलि जी भैरव जी,औरो को हम चिन्हा(पहचाना)नहीं,भुत थे-जै जै कार करते थे|
राम सिंह न कहा-रोज वहां माता-पिता के चरण छूता हूँ|छोटा भाई,मझिले भाई का लड़का करीब  है|सब खुश रहते हैं,वहां महान सुख है|
एक रानी का नाम बताया,शायद-इतराजी कुँवरी|चित्रकूट गई,वहां भगवान का दर्शन हुआ|तब से अधिकतर तीर्थो में रहती थी|वे भी वहां मौजूद हैं|राजा साहब ने फिर कहा-मै आप से एक निवेदन करना चाहता हूँ|हमने कहा-कहिये|तो कहा-मै इस लायक नही था|मै तो आप का रिनी(रिणी)हूँ|जो भगवती जी को सिर मानकर और इतने दिन दिन रोककर बैकुण्ठ भेज दिया|अब हमारे दोनों भाईयो से और भाईयों के लडको से कह दीजियेगा,की अपने अपने इष्ट का जप-पाठ मन लगाकर नेम-टेम से करे,और मिलकर रहें|जीवो पर दया करै|सब भगवान ठीक करेंगे|जब इमां ठीक होता है तब सब काम भगवान पूरा करते हैं|सबका समय भगवान बांधे हैं|उस समय को कोई मिटा नहीं सकता|
महाबीर प्रशाद को,भगवती ने कहा-तुम्हारे पास ही भेजूंगी|उनके लिए महाराज धड मान चुके हैं|और बूढी रानी व उनके पिता भी वहीँ जायेंगे|
३०४-राजा रामसिंह जी के विषय में-(श्री महाराज जी के विचार)२२.११.७३
रामसिंह के यात्रा से हमें दुख हुआ|महाराज का शरीर छुटा|पिता का घर पर माला लेकर राम राम कहते छुटा|आजी का छुटा,चाचा चचिन का छुटा,बड़े चाचा के दो लडको का छुटा|हमारे दो भाइयों का छुटा |हमें इतना दुःख नहीं हुआ जितना रामसिंह के लिए हुआ|यह हम राम सिंह से कहा,तो बोले-यह कोई पुराना हमारा आप का संस्कार रहा होगा|इसी से ऐसा हुआ|
३०५-श्री महाराज जी-भगौती वार्ता-(रामसिंह के सिलसिले में);
भगवती ने कहा हमारा ऐसा कोई भक्त नहीं जो अपना सिर व धड अपने भक्त के लिए माना हो|हम तुमको अपने पास राखुंगी|कृष्ण भगवान ने तुमसे कहा था,कुछ दिन और वहां रहो,थोडा काम तुमसे कराना है,फिर हमारे पास आवोगे|अब तुम सर व धड हमें दे चुके हो,तो भगवान से हम तुमको मांग लेगी|भगवान हमारी बात न टालेंगे|वे दिन दयाल करुना सागर हैं|और यह कहा-जब अपने पास रखौगी तो ऐसी शक्ति तुमको दे दूंगी की सब देवी देवतओं के लोक देख आओगे|सब से मिल आओगे|
भगवती ने कहा-जिसकी सुरती तुममे लग जावेगी वही तुम्हारे पास आ जावेगा|यह तार ऐसा है की खीच लेता है,छूटता नहीं|जब सुरती लगाने वाला आ जाता है तभी छूटता है|इसी तरह से सुरती लगाने से देवी देवता सब आ जाते हैं|इसी सुरती के तार को बहुत कम भक्त जानते हैं|
इसका प्रचार जानकी जी ने किया है-प्रथम शंकर जी को बताया,हनुमान जी को बताया,भरत जी,लखन लाल जी,शत्रुघ्न को बताया,मांडवी,उर्मिला,श्रुतकीर्ति को बताया|इसका बड़ा विस्तार है|सब काम सुरती से होते हैं|थोडा लिखाया है|हमने कहा-जैसी आपकी इच्छा हो हमें मंजूर है|
३०६-राधा लोहारिन काशी वासी शंकर जी को नेम से (नियम से)सिर्फ नहाकर जल चढ़ाती थी,एक दिन शंकर जी प्रकट हो गए|कहा- मांग क्या चाहती है|तो उसने कहा-कृष्ण भगवान की भक्ति|तो कहा-रैदास जी रामानंद जी के शिष्य कृष्ण भक्त हैं|धर्म राज के अंश हैं|उनसे दीक्षा लो|तुझे सब प्राप्त हो जावेगा|तब मै रैदाश के पास गयी,दंडवत किया और शंकर जी सब हाल सुनाया|रैदास जी ने दीक्षा दी|जप शुरू कार दिया|शंकर जी को जल नेम से चढ़ाती रही|दो माह बाद हमारे पत खुल गए|नाम की प्राप्ति,रूप की प्राप्ति,परकाश की,लय की,शून्य समाधि की|सब देवता,शिद्ध,संत सब दर्शन देने लगे|हर शै से महामंत्र ररंकार की धुनी होने लगी,शुभ लोको से तार(पहुँचने के दिव्य साधन)आने लगे|(देवताओ के घर दिव्य भोजन को जाने लगी)कुंडलनी जग गयी,छयिउ चक्कर चलने लगे|सातों कमल खिल गयें|भांति-भांति के सुगंध (नासिका के)दोनों स्वरों से आने लगी|अनहद बजा बजने लगे|घट में अमृत का पान होने लगा|फिर शंकर जी प्रकट होकर ह्रदय से लगा लिया,और पारवती जी ने दिव्य भोजन दिया|और शंकर जी ने पार्वती जी ने एक एक हाथ पकड़ कर अजर अमर कर दिया|बहुत विस्तार है,थोडा लिखा है|
३०७-तुम लिखते ऐसा हो-मालूम होता है ब्रह्मज्ञान का सारा सांगोपांग तुम्हारे पासे है|संसार में जिसको जरुरत होती है,(हमसे)मिलता है और करते कुछ नहीं|मन में अटल विस्वास नहीं है|अगर विश्वास होता तो चारो पदार्थ (धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष)मिल गए होते|तुम्हारे ग्रह भी बाधक हैं|वे करने नहीं देते|अगर उनका यथा शक्ति हक मिल गया होता,तो जल्द काम हो जाता|हमे भगवती जी ने हुकुम दिया है-जप,पाठ,पूजन,कीर्तन,दान,सेवा धर्म बता दिया करो|जो मन लगाकर करेगा,उसका काम हो जावेगा|बिना मन लगे कोई काम नहीं होता,चाहे अच्छा हो या खराब हो-उसका फल जिव को मिलता है|